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________________ करे | 216 भावपाहुड के अनुसार ध्यान के द्वारा संसाररूपी वृक्ष का जड़ से उन्मूलन किया जा सकता है 217 जिस प्रकार एक दीपक जो हवा से बाधा-रहित है वह जलता रहता है उसी प्रकार ज्ञान का दीपक आसक्ति रूपी वृक्ष के अभाव में जलता रहता है। 218 परमात्मप्रकाश का कथन है कि आत्मा जो शास्त्रों और इन्द्रियों द्वारा नहीं जाना जा सकता है वह केवल ध्यान द्वारा प्राप्त होता है। 219 नैतिक अनुशासन और तपों का पालन करते हुए तथा आगमों का विस्तृत अध्ययन होते हुए भी आध्यात्मिक जीवन में सफलता ध्यान के बिना प्राप्त नहीं की जा सकती है।220 जैनधर्म, गीता और उपनिषद् ध्यान को सफलतापूर्वक करने के लिए उचित स्थान, उचित आसन और उचित समय पर समान रूप से विचार करते हैं। चारित्र का सकारात्मक पक्ष - भक्ति उपनिषदों में भक्ति के बारे में प्रो. रानाडे का दृष्टिकोण इस प्रकार है- उनका कथन है " उपनिषदों का शुष्क बुद्धिवाद और चिन्तनात्मक दृष्टि उपस्थित है जो भगवद्गीता के युग में समाप्त होती है 221 और वहाँ पर परमसत्ता का अनुभव करने के लिए सगुण और निर्गुण भक्ति को साधन माने गये हैं।” 222 अविचल भक्ति तीन गुणों (सात्त्विक, 216. मोक्षपाहुड, 26, 27, 28 217. भावपाहुड, 122 218. भावपाहुड, 123 219. 220. 221. 222. परमात्मप्रकाश, 1/23 अमितगति श्रावकाचार, 96 Constructive Survey of Upanisadic philosophy, P. 198 भगवद्गीता, 12/2, 5; 11/53, 54 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (37) www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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