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करती हैं। 188 ये कषायें जो रागद्वेष के रूप में प्रगट होती हैं वे मन को मोहित कर देती हैं और स्थिरता से डिगा देती हैं। 189 मनरूपी पक्षी रागद्वेषरूपी पंखों के कट जाने से उड़ने में असमर्थ होता है । 190 रागद्वेषरूपी बीज मोह ही है जो ज्ञान को ढँक देता है, परिणामस्वरूप वस्तुओं का वास्तविक स्वरूप छिपा रहता है । "
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चारित्र का सकारात्मक पक्ष- सद्गुणों का विकास
अब हम चारित्र के सकारात्मक पक्ष पर विचार करेंगे। बृहदारण्यकोपनिषद् के अनुसार आत्मसंयम के अतिरिक्त दान और दया का पालन किया जाना चाहिए। 192 छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार तप, दान, आर्जव (सरलता) और सत्यवचन का पालन कर्त्तव्य है। 193 कुछ उपनिषद् ब्रह्मचर्य के पालन को भी प्रस्तावित करते हैं। 194 तैत्तिरीयोपनिषद् के अनुसार सदाचरण का पालन और पवित्र ग्रंथों का अध्ययन- ये ही सद्गुण हैं। 195 जब शिष्य अध्ययन करने के पश्चात् गुरु से विदा लेता है तब उसको परामर्श दिया जाता है कि वह सत्य बोले, नियमों का आदर करे, पवित्र ग्रंथों के अध्ययन में प्रमाद न करे, कल्याण के मार्ग और
188. ज्ञानार्णव, 22/2
189.
ज्ञानार्णव, 23/7
190.
ज्ञानार्णव, 23/27
191. ज्ञानार्णव, 23/30
192.
इष्टोपदेश, 7 बृहदारण्यकोपनिषद्, 5/2/3 193. छान्दोग्योपनिषद्, 3/17/4
194. कठोपनिषद्, 1/2/15
प्रश्नोपनिषद्, 1/1/15
195. तैत्तिरीयोपनिषद्, 1/9
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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