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________________ गया है, साथ ही हमने सिद्ध अवस्था को भी समझाया है जो इन चौदह गुणस्थानों से परे है। वर्तमान अध्याय में हम उपनिषद्, भगवद्गीता, शंकर-वेदान्त, पूर्व-मीमांसा, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग तथा प्रारंभिक बौद्ध धर्म के आचार के साथ जैन आचार की तुलना करेंगे। विभिन्न प्रकार से नैतिक आदर्श की अभिव्यक्तियाँ सर्वप्रथम हम गीता और उपनिषदों के चिन्तकों द्वारा जो नैतिक आदर्श का स्वरूप बताया गया है उसको समझायेंगे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के नैतिक आदर्श पर विचार किया है किन्तु वे केवल अभिव्यक्ति की भिन्नताएँ हैं, उनके अर्थ में कोई भिन्नता नहीं है। (क) प्रथम, कठोपनिषद् में प्रतिपादित प्रेय मार्ग और श्रेय मार्ग में भेद करने के पश्चात् विवेकी प्रेय की अपेक्षा श्रेय मार्ग को चुनता है जिसके कारण जीवन का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त किया जाता है। इसके विपरीत मूढ़ प्रेय मार्ग की तरफ लालायित रहने के कारण श्रेय मार्ग का वास्तविक लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है। अतः प्रेय मार्ग जिसका अधिकांश लोग अनुसरण करते हैं उसका श्रेय मार्ग से भेद किया जाना चाहिये। यह श्रेय मार्ग मनुष्य को क्षणभंगुर सांसारिक वस्तुओं से और दुःखों से मुक्त कर देता है। जैनधर्म के अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का मार्ग ज्ञानियों द्वारा स्वीकार किया जाता है जब कि मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र का मार्ग अज्ञानियों द्वारा स्वीकार किया जाता है। पूर्ववर्ती मार्ग मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर देता है 1. कठोपनिषद्, 1/2/1, 2 (2) Ethical Doctrines in Jainism FETOS À TERREIN ANG Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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