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________________ बौद्धिक जीवन और अबौद्धिक ( वासनात्मक) जीवन में सामंजस्य है। इनके अनुसार सामाजिक कल्याण तो संभव है किन्तु व्यक्तिगत शुभ पूर्णतया प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि जीवन में अबौद्धिक भाग को पूर्णतया अणुव्रतों के जीवन में समाप्त नहीं किया जा सकता । बैन्थम और मिल बैन्थम और मिल उपयोगितावाद के मुख्य प्रवर्तक हैं। उनके अनुसार उच्चतम आदर्श है- “ अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख । " ये दोनों चिन्तक अहंवाद से सार्वलौकिकवाद की ओर बढ़ने का दावा करते हैं किन्तु ये इसमें पूर्णतया सफल नहीं हो सके। बैन्थम ने अहंवादी विचारधारा के साथ इन्द्रियसुख की मात्रा के मापदण्ड को उपयोगितावाद का आधार बताया। उनका कहना है कि मनुष्य उस समय तक दूसरों की सेवा नहीं करेगा जब तक उसका स्वयं का कोई लाभ न हो। इस तरह से वह अहंवादी उपयोगितावाद का प्रवर्तक बन गया क्योंकि स्वार्थ उसके उपयोगितावाद का आधार बना। जैनधर्म के अनुसार जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जहाँ मनुष्य अपनी हानि करके भी दूसरों की सेवा करते हैं । मनोवैज्ञानिक तथ्य को आचारशास्त्र की गरिमा के स्तर पर नहीं रखना चाहिए। जैन आचार उन क्रियाओं की प्रशंसा करता है जो व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर की जाती हैं। इसके अतिरिक्त जैन आचार का मानना है कि इन्द्रियसुखवाद को आत्म नियंत्रण से रोका जाना चाहिए । मिल का उपयोगितावाद सहानुभूतिपूर्ण उपयोगितावाद कहलाता है। उसके अनुसार मनुष्य परोपकारी आचरण मानवता के सुख के लिए अपनाता है और ऊँचे और नीचे सुखों में भेद करता है । इस भेद का मापदण्ड मिल के अनुसार 'गरिमा का प्राकृतिक भाव' है। (70) - Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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