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________________ रहस्यवादी के विकास के अगले गुणस्थानों को वर्णन करने से पहले हम स्वाध्याय और जैनधर्म में भक्ति की धारणा पर विचार करेंगे, क्योंकि ये दोनों रहस्यवादी के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन के महत्त्वपूर्ण घटक हैं। स्वाध्याय के महत्त्व को समझे बिना साधक उल्लेखनीय सफलता प्राप्त नहीं कर सकेगा और भक्ति के मूल्यांकन के बिना वह अपने नैतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों को स्थायी बनाने में सफल नहीं होगा। स्वाध्याय के प्रकार स्वाध्याय के पाँच प्रकार हैं-105 (1) वाचना- जो व्यक्ति सीखने की जिज्ञासा रखता है उसके लिए शब्दों और अर्थों को समझाना। (2) पृच्छना- अपने संदेह को दूर करने के लिए तथा शब्दों के अर्थों को पुष्ट करने के लिए प्रश्न पूछना। (3) अनुप्रेक्षा- सीखे हुए अर्थ पर बार-बार विचार करना। (4) आम्नाय- आगमों को कंठस्थ करना और उनकी पुनरावृत्ति करते रहना। (5) धर्मोपदेश- कुमार्ग को नष्ट करने की इच्छा से नैतिक सिद्धान्तों पर प्रवचन देना जिससे संदेह दूर हो जाएँ और जीवन के आवश्यक पहलू प्रकाशित हों। आगम चार अनुयोगों के रूप में आगम चार अनुयोगों के रूप में विभक्त है- (1) प्रथमानुयोग, (2) करणानुयोग, (3) चरणानुयोग, और (4) द्रव्यानुयोग। (1) प्रथमानुयोग- प्रथमानुयोग प्रस्तुत करता है- एक व्यक्ति के 105. उत्तराध्ययन, 30/34 सर्वार्थसिद्धि, 9/25 राजवार्तिक, 9/25 Ethical Doctrines in Jainism Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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