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जीवन का चित्रण या तरेसठ शलाका पुरुषों का वर्णन अथवा दोनों का | 106 इसमें मनुष्य जीवन के चार उद्देश्यों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष), तीन रत्नों की प्राप्ति (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ) और धर्मध्यान व शुक्लध्यान के बारे में निरूपण किया जाता है। 107 इस अनुयोग के अन्तर्गत महापुराण, हरिवंशपुराण, पाण्डवपुराण, पद्मपुराण आदि सम्मिलित हैं। (2) करणानुयोग - करणानुयोग में लोक और अलोक, समय का परिवर्तन और चार गतियों के विषय का वर्णन होता है। 198 इस अनुयोग के अन्तर्गत त्रिलोकसार और तिलोयपण्णत्ती आदि समायोजित हैं। (3) चरणानुयोग - चरणानुयोग में गृहस्थ व मुनि के आचार के विविध पक्षों के बारे में विचार किया जाता है। 109 मूलाचार, भगवतीआराधना, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि ग्रन्थ चरणानुयोग के उदाहरण हैं। (4) द्रव्यानुयोग - जीव-अजीव, पुण्यपाप, बंध-मोक्ष के स्वरूप की व्याख्या करता है । 10 प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, समयसार आदि इस अनुयोग के अन्तर्गत हैं । तत्त्वार्थसूत्र परवर्ती तीनों अनुयोगों (करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग ) को साररूप में प्रस्तुत करता है।
स्वाध्याय का महत्त्व
जैनधर्म के अनुसार सम्यग्ज्ञान वह है जो जीवन के सार को प्रकाशित करता है; आत्मसंयम का पोषण करता है; " जो विषयासक्ति
106. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, टीका 2/2
107. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 43
108. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 44
109. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 45
110. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 46
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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