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________________ रहस्यवादी मार्ग इस प्रकार बहिरात्मा जो मिथ्यादृष्टि होता है, वह त्यागने योग्य है। अन्तरात्मा जो सम्यग्दृष्टि है अर्थात् जो आत्मा जाग्रत होता है वह शरीर, बाह्य जगत और शुभ-अशुभ मनोभावों से पूर्णतया भिन्न होता है। परमात्मा रहस्यवादी खोज का वास्तविक लक्ष्य है। अन्तरात्मा से परमात्मा तक की यात्रा नैतिक और बौद्धिक साधनों के माध्यम से की जाती है जिससे अन्तर्दिव्यता की उत्पत्ति में जो बाधक होता है वह मिटा दिया जाता है। पूर्णता प्राप्त होने से पहले एक ज्योतिपूर्ण अवस्था से गिरना संभव हो सकता है। पूर्ण रहस्यवादी मार्ग इस प्रकार बताया जा सकता है- (1) आत्मजाग्रति, (2) शुद्धीकरण, (3) ज्योतिपूर्ण अवस्था, (4) आत्मा की अंधकारमय रात्रि और (5) लोकातीत (अर्हत्) अवस्था। अंडरहिल के अनुसार “उपर्युक्त सभी विकास की प्रक्रिया के विभिन्न पक्ष हैं, जो चेतना को निम्न स्तर से उच्च स्तर पर ले जाते हैं और जीवन को स्वतन्त्र आध्यात्मिक जगत' के अनुसार निर्मित करने की प्रेरणा देते हैं।"28 जैनदर्शन की शब्दावली में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रहस्यवादी प्रयत्नों के लिए अनुल्लंघनीय हैं। इस तरह बुद्धि, संकल्प और भाव- ये तीनों ही घटक रहस्यात्मक अनुभूति के लिए किए गए प्रयत्न टाले नहीं जा सकते हैं। रहस्यवादी (Mystic) और तत्त्वमीमांसक (Metaphysician) ...तात्त्विक शब्दावली में हम कह सकते हैं कि रहस्यवाद आत्मा की स्वाभाविक उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की अनुभूति है। यह आत्मा के स्वाभाविक गुण और पर्याय की अभिव्यक्ति है अर्थात् यह आत्मा 28. Mysticism, P.169 29. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 20 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (67) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004207
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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