SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विदेहमुक्ति में, स्वसमय आदि में होता है। अत: तात्त्विक आदर्श, नैतिक आदर्श और धार्मिक आदर्श पूर्णतया अभिन्न हैं। नैतिक उच्चतम आदर्श के रूप में पण्डित-पण्डित मरण ___ आठवाँ, नैतिक उच्चतम आदर्श को प्रकट करने के लिए जैनदर्शन मृत्यु के रूप में भी आदर्श की घोषणा करता है। उसके अनुसार मुमुक्षु का लक्ष्य पण्डितमरण, बाल-पण्डितमरण, बालमरण और बालबालमरण को छोड़कर, एकाग्र प्रयास से पण्डित-पण्डित मरण (दिव्यमृत्यु) को प्राप्त करना होना चाहिए। ये पाँच प्रकार के मरण33 आध्यात्मिक प्रगति की विभिन्न श्रेणियों को दृष्टि में रखते हुए134 गिनाये गये हैं। निम्नतम और अत्यधिक घृणास्पद (बाल-बालमरण) मरण उस व्यक्ति का होता है जो मिथ्यात्व (मूर्छा) का जीवन जीता है।135 उच्चतम प्रकार का मरण (पण्डित-पण्डितमरण) सदेह केवलज्ञानियों का होता है, जब वे शरीर को त्यागते हैं।136 वे आत्माएँ, जिन्होंने आध्यात्मिक रूपान्तरण (सम्यग्दर्शन) को प्राप्त कर लिया है, किन्तु वे अपने जीवनकाल में अणुव्रतों का पालन करने में असमर्थ होते हैं, (वे) बालमरण के वशीभूत होते हैं। इस प्रकार बालपण्डित मरण38 से इसका भेद किया जाना चाहिए। यह उन लोगों की नियति है जो आध्यात्मिक रूपान्तरण के पश्चात् अणुव्रतों का पालन करते हैं। मुनि जो महाव्रतों का पालन 133. भगवती आराधना, 26 134. We shall deal with the stages of spiritual advancement in the sixth chapter. 135. भगवती आराधना, 30 136. भगवती आराधना, 27 137. भगवती आराधना, 30 138. भगवती आराधना, 2078 (52) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy