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________________ हैं कि धार्मिक और नैतिक आदर्श एक ही हैं। आध्यात्मिक मूल्य और नैतिक मूल्यों में तादात्म्य माना जा सकता है। नैतिक आदर्श के रूप में निश्चयनय तृतीय, हमें नैतिक आदर्श की अन्य प्रकार से अभिव्यक्ति जैन ग्रंथों में मिलती है। जैन दार्शनिक इसको समझाने के लिए नयों की भाषा का प्रयोग करते हैं। प्रथम शताब्दी के उत्कृष्ट नैतिक-धार्मिक दार्शनिक कुन्दकुन्द निश्चयनय और व्यवहारनय का प्रयोग करने के लिए विशिष्ट हैं जिससे अध्यात्मवाद की भाषा के रूप में नैतिक आदर्श को समझा जा सके। निश्चयनय आत्मा को उसकी शुद्ध अवस्था में ग्रहण करता है उसके विरोध में व्यवहारनय आत्मा को बंधन-युक्त, अशुद्ध आदि के रूप में वर्णन करता है। इस तरह से निश्चयनय नैतिक आदर्श को व्यक्त करने की ओर उन्मुख है। निःसन्देह हम अनादिकाल से अशुद्ध अवस्था में चले आ रहे हैं, किन्तु निश्चयनय हमें हमारे आध्यात्मिक वैभव एवं गौरव की याद दिलाता है और मलिन आत्मा को उसके अपनी आध्यात्मिक सम्पत्ति का अवलोकन करने के लिए प्रेरित करता है। .. समयसार के प्रारम्भ में कुन्दकुन्द ने उपर्युक्त दो नयों के अर्थों का संक्षिप्तीकरण किया है, यह कहकर कि प्रत्येक आत्मा ने सांसारिक सुख और उनसे उत्पन्न कर्म बंधन के बारे में सुना है, निरीक्षण किया है, अनुभव किया है, किन्तु उसके द्वारा उच्चतम आत्मा का स्वभाव बिलकुल नहीं समझा गया है।123 अत: पूर्ववर्ती विवरण व्यवहारनय कहलाता है, जब कि परवर्ती कथन निश्चयनय कहलाता है, जो संसारी आत्मा की अंत:शक्ति की ओर संकेत करता है जिससे वह संसारी आत्मा शुद्ध हो जाय और शुद्ध अवस्था का अनुभव कर सके। इसलिए यह कहा जाता है कि जब 123. समयसार, 4 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (45) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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