SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ. केर्ड के अनुसार तीन प्रकार के रुखों (Attitudes) से एक ही आत्मा की इन तीन अवस्थाओं से तुलना की जा सकती है। मनुष्य अंतरंग को देखने से पहले बाहर देखता है, ऊपर की ओर देखने से पहले अंतरंग की ओर देखता है।122 बहिरात्मा बाहर की ओर देखता है, जब वह अन्तरात्मा हो जाता है तो अंतरंग की ओर देखता है और जब वह परमात्मा हो जाता है तो ऊपर की ओर देखनेवाला हो जाता है। इस प्रकार परमात्मा का अनुभव उच्चतम आदर्श के अनुभव के समान हो जाता है। कुन्दकुन्द, योगीन्दु और पूज्यपाद जैसे महान जैन विचारक इस बात पर सहमत हैं। वे परमात्मा के अनुभव का उच्चतम आदर्श के रूप में उल्लेख करते हैं। यहाँ 'सतर्कता' के एक शब्द की आवश्यकता है। जैनदर्शन के ग्रंथों में ‘परमात्मा' और 'ब्रह्म' शब्द पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त हुए हैं, किन्तु उपनिषदों के 'ब्रह्म' को जो विश्व का आधार है उसके साथ उनको नहीं उलझाना चाहिये। जैनदर्शन अनन्त ‘ब्रह्म' के अस्तित्व को स्वीकार करता है अर्थात् अनन्त ‘परमात्मा' जो स्वअस्तित्ववाले व्यक्तियों के आध्यात्मिक विकास की उत्कृष्ट अवस्थाएँ हैं। जैनदर्शन के अनुसार आत्मा और परमात्मा अभिन्न ही है, क्योंकि वे एक ही सत्ता की दो अवस्थाएँ हैं। इस प्रकार प्रत्येक आत्मा अंत:शक्ति से दिव्य है और दिव्यता का प्रकटीकरण परमात्म-अवस्था है। यदि परमात्मा का यह अर्थ जैन दृष्टिकोण से स्वीकार नहीं किया जाता है तो आत्मा के तात्त्विक बहुत्ववाद को छोड़ना पड़ेगा जिसको जैनदर्शन प्रतिपादित करता है। यद्यपि उपनिषद के 'ब्रह्म' और जैनदर्शन के ब्रह्म' में कई समानताएँ दिखती हैं, तो भी उनमें बहुत भेद हैं। उच्च आदर्श के रूप में परमात्मा की धारणा पर जोर देने से हम इस दृष्टिकोण से प्रतिबद्ध 122. Evolution of Religion, II. 2. P. 247, vide, Constructive Survey of Upanişadic Philosophy (44) Ethical Doctrines in Jainism star 3418R ita FAGNAT Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy