________________
और इसके फलस्वरूप वह अनित्यता और नित्यता का तात्त्विक रूप से समर्थन करता है । दोनों (अनित्यता और नित्यता) पृथक हो सकते हैं, किन्तु केवल तार्किक विचार के स्तर पर। द्रव्य की यह धारणा हमें ग्रीक दार्शनिक ‘पारमेनाइडीज' का स्मरण कराती है जिन्होंने नित्यता को द्रव्य का एकमात्र स्वभाव माना और अनित्यता को अस्वीकृत किया। उसी प्रकार यह धारणा हरोक्लेटस' की याद दिलाती है, जिसके लिए नित्यता एक भ्रम है और अनित्यता वास्तविक है। यह हमको बौद्ध दर्शन की प्रवाहशीलता और वेदान्त की नित्य परमसत्ता का भी स्मरण कराती है। लेकिन ये सभी अनुभव का एकान्तिक मूल्याङ्कन है। यह कहा जा सकता है, “यदि औपनिषदिक दार्शनिकों ने जगत में अपरिवर्तनीय सत्ता को पाया और बुद्ध ने सभी वस्तुओं को अनित्यरूप बताया, महावीर ने सामान्य अनुभव का अनुसरण किया और उन्होंने नित्यता और अनित्यता में कोई विरोध नहीं पाया और इस तरह वे सम्पूर्ण निरपेक्षवाद से मुक्त हो गये।"
अनुभव' शब्द का अर्थ . जैन दार्शनिकों द्वारा स्वीकृत 'अनुभव' शब्द के व्यापक अर्थ को यहाँ बताना असंगत नहीं होगा। 'अनुभव' शब्द के व्यापक अर्थ में पाँच प्रकार के ज्ञान सम्मिलित हैं, उदाहरणार्थ- मति (ऐन्द्रिक), श्रुत (आगमिक/शाब्दिक), अवधि (पौद्गलिक वस्तुओं का अन्तर्बोध या प्रत्यक्ष दृष्टि), मन:पर्यय (मानसिक पर्यायों का प्रत्यक्ष (अन्तर्बोधात्मक) ज्ञान) और केवल (पूर्णज्ञान या केवलज्ञान)। प्रथम दो परोक्ष ज्ञान के अन्तर्गत आते हैं, क्योंकि उनको अपनी उत्पत्ति के लिए बाहरी ज्ञानेन्द्रियों और मन की आवश्यकता होती है, अंतिम तीन प्रत्यक्ष ज्ञान के अन्तर्गत
7. Studies in Jaina Philosophy, P. 18
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
(17)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org