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हमारे आचार-सम्बन्धी विचार-विमर्श से घनिष्ठ संबंध रखता है। तृतीय, द्रव्यों का संक्षिप्त परिचय दिया जायेगा और नैतिक आदर्श की अभिव्यक्तियों के विभिन्न प्रकार प्रस्तुत किए जायेंगे ।
द्रव्य का सामान्य स्वभाव
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जैनदर्शन के अनुसार द्रव्य वस्तुगत दृष्टि से अपने अन्तर्गत विरोधों को सम्मिलित करता है, केवल ऊपरी रीति से। जैनदर्शन इन विरोधों के लिए भाषा की अपर्याप्तता स्वीकार करता है। इसलिए द्रव्य सत् और. असत्,' एक और अनेक, ' नित्य और अनित्य' आदि विरोधों के रूप में विचारा गया है। जैनदर्शन का यह पक्ष उन दार्शनिकों को अस्त-व्यस्त कर देता है जो निरपेक्ष पद्धति से विचार करने के अभ्यस्त हैं । प्रागनुभविक तर्क (A priori logic) से प्रभावित होने के कारण वे दार्शनिक द्रव्य के जैन दृष्टिकोण को असंगत चित्रित करते हैं और इसलिए वे सर्वव्यापक नित्यवाद या सर्वव्यापक अनित्यवाद के निरपेक्ष सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं। जैनदर्शन तात्त्विक समस्याओं के समाधान के लिए अनुभव (Experience) के साक्ष्य के आधार पर चलता है और इस तरह जैन दार्शनिकों की अनुभव पर आश्रित दृष्टि को लेकर सभी निरपेक्षवादियों से उनका मतभेद है। जैनदर्शन द्रव्य का ढाँचा अनुभव के आधार पर बनाता है और प्रागनुभविक तर्क के आकर्षण के द्वारा प्रभावित नहीं किया जाता है। दार्शनिक चिन्तन की निरपेक्ष पद्धति का गहरा विरोधी होने के कारण जैनदर्शन, जो कुछ अनुभव में दिया जाता है उसका मूल्याङ्कन करता है
3. युक्त्यनुशासन, 49
4. आप्तमीमांसा, 15
5. आप्तमीमांसा, 34
6. आप्तमीमांसा, 56
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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