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कि महावीर ने स्पष्टीकरण के द्वारा अपने पूर्ववर्ती के धर्ममत को उन्नत किया और बिलकुल ही नया धर्ममत स्थापित नहीं किया। प्रो. घाटगे का कथन है- “जैसी स्थिति है उसके द्वारा यह समझा जा सकता है कि परम्परा ने पार्श्व के धर्म के केवल उन बिंदुओं को ही बनाए रखा जो महावीर के धर्म से भिन्न थे, जब कि दूसरे समान बिंदुओं की उपेक्षा कर दी गयी। कुछ भिन्नताएँ जो जानी गयी हैं वे महावीर को निश्चितरूप से एक विद्यमान धर्म के सुधारक के रूप में रखती हैं- एक व्रत (ब्रह्मचर्य) को जोड़ना, नग्नता का महत्त्व और दार्शनिक सिद्धान्तों की अधिक योजनाबद्ध व्यवस्था- इनके लिए महावीर के सुधारवादी उत्साह को श्रेय दिया जा सकता है)"25 "इस प्रकार बुद्ध के विपरीत महावीर एक नये धर्म को स्थापित करने के बजाय विद्यमान धर्म के और संभवतया संघ के सुधारक थे। वे (महावीर) संभवतया पार्श्व के सुव्यवस्थित धर्ममत के अनुयायी के रूप में चित्रित किए गए हैं। पालि त्रिपिटक महावीर को नये धर्ममत का संस्थापक नहीं मानता है, केवल उनको पूर्व में विद्यमान धार्मिक समुदाय का नेता मानता है।''26 "नैतिक शिक्षण में सुधारों के अतिरिक्त यह मालूम करना कठिन है कि महावीर ने अपने पूर्ववर्ती (पार्श्व) के तात्त्विक और मनोवैज्ञानिक चिन्तन में क्या वृद्धि की? अत्यधिक संभावना यह है कि जो कुछ उन्होंने किया वह विश्वासों के अव्यवस्थित पुंज को साधु और गृहस्थ के आचरण के लिए कठोर नियमों के समूह में वर्गीकृत कर दिया। (अत: यह कहा जा सकता है कि) गणना और वर्गीकरण की ओर निश्चित झुकाव के लिए महावीर को श्रेय दिया जा सकता है।''27 25. The Age of Imperial Unity p. 412 26. The Age of Imperial Unity p. 412 27. The Age of Imperial Unity p. 420
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