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करता है कि ऋषभदेव जैनधर्म के संस्थापक थे।" "ऋषभदेव द्वारा उपदिष्ट अहिंसा का सिद्धान्त संभवतया उस समय की प्रचलित संस्कृति के पहले अस्तित्व में रहा है।''
परम्परानुसार ऋषभ कोसल में पैदा हुए थे; उनके पिता कुलकर नाभि व माता मरुदेवी थी। शेष तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार हैं:- (2) अजित, (3) संभव, (4) अभिनन्दन, (5) सुमति, (6) पद्मप्रभ, (7) सुपार्श्व, (8) चन्द्रप्रभ, (9) पुष्पदंत, (10) शीतल,. (11) श्रेयांस, (12) वासुपूज्य, (13) विमल, (14) अनंत, (15) धर्म, (16) शांति, (17) कुंथु, (18) अर, (19) मल्लि, (20) मुनिसुव्रत, (21) नमि, (22) नेमि, (23) पार्श्व और (24) महावीर। “जैन परम्परा सभी तीर्थंकरों को विशुद्ध क्षत्रिय जाति की उपज मानती है; उनके संबंध में दूसरी बात उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लि के बारे में मतभेद को लेकर है। श्वेताम्बरों के अनुसार वे स्त्री थे) दिगम्बर इससे सहमत नहीं हैं।'' इसके अतिरिक्त पाँचवें तीर्थंकर 'सुमति' का नामोल्लेख भागवतपुराण में है। वह (भागवतपुराण) हमको बताता है . कि “कुछ नास्तिकों के द्वारा वे अधार्मिकरूप से ईश्वरीय दिव्यता के रूप में पूजे जायेंगे।"6 अन्य तीर्थंकर अरिष्टनेमि (नेमि) कृष्ण के आख्यान से संबंधित हैं।'
3. 4.
5. 6.
Indian Philosophy, Vol.1. p.287 History of Philosophy Eastern and Western, Vol.1.,p. 139 History of Jaina Monachism, p.59 Visnu Purana, p.164 History of Jaina Monachism, p.59 History of Jaina Monachism, p.59
7.
(2)
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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