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________________ पार्श्व की ऐतिहासिकता परम्परा के अतिरिक्त ऐतिहासिक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए हम पाते हैं कि अंतिम दो तीर्थंकरों - अर्थात् पार्श्व और महावीर की ऐतिहासिकता अब स्वीकार कर ली गई है। कुछ तर्क जो पार्श्व की ऐतिहासिकता के लिए प्रस्तुत किये गये हैं वे निम्न है - प्रथम, डॉ. याकोबी ने तथ्यात्मकरूप से सिद्ध किया है कि जैनधर्म महावीर के समय से पहले भी तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय अस्तित्व में था। ये बौद्ध संदर्भ हैं जिन्होंने उनको यह दृष्टिकोण अपनाने के लिए बाध्य किया। उनमें से एक यह है; दीघनिकाय के सामञ्ञफलसुत्त की त्रुटि है कि इसने चातुर्यामधर्म जो पार्श्व के द्वारा उपदिष्ट था उसको नातपुत (महावीर) पर आरोपित किया इससे महावीर के पूर्व जैनधर्म का अस्तित्व सिद्ध होता है। डॉ. याकोबी के शब्दों में, "पालि चातुयाम समान है प्राकृत चातुज्जाम के, यह एक प्रसिद्ध जैन शब्द है जो सूचित करता है कि पार्श्व के चार व्रत हैं जो महावीर के पाँच व्रतों (पंच महव्वय) के नाम पर बताये गए हैं । यहाँ, तब बौद्धों ने, मैं मानता हूँ एक गलती की है। नातपुत्त महावीर पर एक सिद्धान्त को आरोपित किया जो वास्तव में उसके पूर्ववर्ती पार्श्व से संबंधित था। यह एक महत्त्वपूर्ण गलती है, क्योंकि बौद्ध इस शब्द का प्रयोग निग्गंथ मत का वर्णन करने में नहीं कर सकते थे जब तक उन्होंने उसे पार्श्व के अनुयायियों से न सुना हो और वे उसका प्रयोग नहीं करते, यदि महावीर के द्वारा किए गये सुधार बुद्ध के समय के निग्गंथों द्वारा पहले से ही ग्रहण किये हुए होते। इसलिए मैं बौद्धों की इस भारी भूल को जैन परम्परा की उचितता का सबूत मानता हूँ कि पार्श्व के अनुयायी महावीर के समय अस्तित्व में थे।"" द्वितीय, स्वयं जैन आगमों द्वारा पार्श्व की ऐतिहासिकता के प्रमाण उपलब्ध 8. Sacred Books of the East Series, Vol. XLV.p.XXI Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (3) www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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