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प्रोषधोपवासव्रत में अष्टमी और चतुर्दशी के दिन चार प्रकार के भोजन का त्याग किया जाना चाहिए। संभवतया व्यक्तियों की अशक्तता को ध्यान में रखते हुए कार्तिकेय 176 प्रोषधोपवासव्रत में दिन में एक बार सादा भोजन करने को भी सम्मिलित करते हैं। अमितगति" और आशाधर 178 भी इस व्रत में केवल पानी लेना सम्मिलित करते हैं। इस व्रत के पालन में ध्यान करना, आध्यात्मिक साहित्य को पढ़ना, सादा और कषायमुक्त जीवन जीना और गृहस्थी के कार्यों में व्यस्तता न होना अपेक्षित है। 179 श्रावकप्रज्ञप्ति निरूपित करती है कि प्रोषधोपवासव्रत में भोजन और गृहस्थी के कार्य आंशिक या पूर्णरूप से त्यागे जाने चाहिए, सादा और कषायमुक्त जीवन अंगीकार किया जाना चाहिए। इस व्रत के पालन के लिए मंदिर, साधुओं का निवास, प्रोषधशाला या कोई पवित्र स्थान अपने ठहरने के लिए चुनना चाहिए | 180
प्रोषधोपवासव्रत की प्रक्रिया
विशेषरूप से अमृतचन्द्र 181 प्रोषधोपवासव्रत को पालने की प्रक्रिया को निर्धारित करते हैं। गृहस्थी के सभी कार्यों व संसार के प्रति
176. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 359
177. अमितगति श्रावकाचार, 6/90
178. सागार धर्मामृत, 5/35 कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 358
179.
रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 107, 108
अमितगति श्रावकाचार, 6/89
Yaśastilaka and Indian Culture, p. 282
180. श्रावकप्रज्ञप्ति, 322
सर्वार्थसिद्धि, 7/21 चारित्रसार, पृष्ठ 22
181. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 152-157
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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