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आसक्ति को छोड़ने के पश्चात् प्रोषध दिन के पहले दिन मध्याह्न में व्रत धारण करना चाहिए। इसके पश्चात् एकान्त स्थान में जाना चाहिए, पापपूर्ण सभी क्रियाओं को छोड़ना चाहिए, सभी ऐन्द्रिक सुखों को त्यागना चाहिए, शारीरिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं को उचित रूप से नियंत्रित करना चाहिए। शुभ चिन्तन में शेष दिन बिताने के पश्चात् शाम को सामायिक की क्रिया करनी चाहिए। आध्यात्मिक साहित्य के अध्ययन में तल्लीन होने के द्वारा निद्रा जीतकर शुद्ध चटाई . पर रात्रि को बिताना चाहिए। अगली सुबह सामायिक की क्रिया करने के पश्चात् प्रासुक द्रव्यों के साथ जिनेन्द्र-पूजन करनी चाहिए। उसी तरह दिन, दूसरी रात और तीसरे दिन के मध्याह्न तक सतर्कता से बिताना चाहिए। इस प्रकार प्रोषधोपवासव्रत का समय 16 यम (48 घंटे) नियत
प्रोषधोपवासव्रत और पाँच पाप
सभी प्रकार की पापपूर्ण क्रियाओं से मुक्त होने के कारण प्रोषधोपवासव्रत को पालन करनेवाला पूर्ण रूप से साधुओं के महाव्रत पालने के सदृश हो जाता है। भोग और उपभोग की वस्तुओं के त्याग के कारण वह सभी प्रकार की जीवों की हिंसा से दूर रहता है। वह असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और आसक्ति का त्याग कर देता है।182 अतिथिसंविभागवत का स्वरूप
अब हम अतिथिसंविभागवत के स्वरूप का वर्णन करेंगे। कार्तिकेय के अनुसार वह व्यक्ति जो सुपात्र को चार प्रकार का दान देता है वह अतिथिसंविभागवत का उचित प्रकार से पालन करनेवाला होता है।183
182. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 158, 159 183. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 360, 361
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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