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स्थान शान्तिभंग करनेवाले कोलाहल से, व्यक्तियों की भीड़ से, मक्खी, मच्छर आदि कीड़ों से मुक्त हो वह सामायिक के लिए उचित स्थान है । " दूसरे शब्दों में, शब्दरहित और एकान्त स्थान चाहे वह जंगल, घर, मंदिर हो या और कोई दूसरा ऐसा ही स्थान सामायिक करने के लिए चुनना चाहिए। 162 (2) सामायिक दिन में तीन बार की जानी चाहिए अर्थात्- सुबह, दोपहर और शाम | 13 आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं कि गृहस्थ को सामायिक की क्रिया को आवश्यक समझना चाहिए और कम से कम एक दिन में दो बार इसे करनी चाहिए अर्थात् - सुबह और शाम। 164 वे आगे कहते हैं कि सामायिक का करना दूसरे समय में भी यदि होता है तो वह आध्यात्मिक और नैतिक गुणों को बढ़ाने में सहायक होगा, इसलिए यह अनुचित नहीं है बल्कि हितकारी है । " समन्तभद्र कहते हैं कि व्यक्ति को उतने समय तक सामायिक करनी चाहिए जो समय उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार निश्चित किया है। 166 अपने आपको सभी प्रकार की सांसारिक क्रियाओं से अलग करके और सभी मानसिक व्याकुलताओं को जीतकर सामायिक की अवधि को उपवास और एकासन के दिनों में बढ़ाना चाहिए। 167 इसको प्रतिदिन शनैः-शनैः बढ़ाना चाहिए, क्योंकि सामायिक पाँच व्रतों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में काम की है। 168 (3) सामान्यतया
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161. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 353
162. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 99 163. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 354 पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 149
164.
165. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 149
166. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 98
167. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 100
168. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 101
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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