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________________ 161 स्थान शान्तिभंग करनेवाले कोलाहल से, व्यक्तियों की भीड़ से, मक्खी, मच्छर आदि कीड़ों से मुक्त हो वह सामायिक के लिए उचित स्थान है । " दूसरे शब्दों में, शब्दरहित और एकान्त स्थान चाहे वह जंगल, घर, मंदिर हो या और कोई दूसरा ऐसा ही स्थान सामायिक करने के लिए चुनना चाहिए। 162 (2) सामायिक दिन में तीन बार की जानी चाहिए अर्थात्- सुबह, दोपहर और शाम | 13 आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं कि गृहस्थ को सामायिक की क्रिया को आवश्यक समझना चाहिए और कम से कम एक दिन में दो बार इसे करनी चाहिए अर्थात् - सुबह और शाम। 164 वे आगे कहते हैं कि सामायिक का करना दूसरे समय में भी यदि होता है तो वह आध्यात्मिक और नैतिक गुणों को बढ़ाने में सहायक होगा, इसलिए यह अनुचित नहीं है बल्कि हितकारी है । " समन्तभद्र कहते हैं कि व्यक्ति को उतने समय तक सामायिक करनी चाहिए जो समय उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार निश्चित किया है। 166 अपने आपको सभी प्रकार की सांसारिक क्रियाओं से अलग करके और सभी मानसिक व्याकुलताओं को जीतकर सामायिक की अवधि को उपवास और एकासन के दिनों में बढ़ाना चाहिए। 167 इसको प्रतिदिन शनैः-शनैः बढ़ाना चाहिए, क्योंकि सामायिक पाँच व्रतों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में काम की है। 168 (3) सामान्यतया 165 161. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 353 162. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 99 163. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 354 पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 149 164. 165. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 149 166. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 98 167. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 100 168. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 101 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only (141) www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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