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सामायिक का स्वरूप
__ सामायिक मन, वचन और काय की क्रियाओं का आत्मा में तल्लीन होना है।155 अमृतचन्द्र कहते हैं कि सामायिक का उद्देश्य जगत : की वस्तुओं से राग-द्वेष त्यागना और मन की साम्यावस्था अपनाने के पश्चात् आत्मा को प्राप्त करना है। समन्तभद्र सामायिक की प्रक्रिया के लिए पाँच प्रकार के पापों को छोड़ना प्रस्तावित करते हैं।57 श्रावकप्रज्ञप्ति के अनुसार सामायिक निषेधात्मक रूप से पाप क्रियाओं को त्यागना है और स्वीकारात्मक रूप से निष्पाप क्रियाओं को करना है।158 मन की समतारूप स्थिति गृहस्थ के जीवन में शुभ चिन्तन के समान होती है, जो शुभोपयोग कही जाती है जिसका शुद्धोपयोग से भेद किया जाना चाहिए। जिस प्रकार सम्यग्दर्शन मोक्ष के मूल में है उसी प्रकार सामायिक भी मोक्ष के लिए आचरण के मूल में है। अशुभ, अस्थायी और दुःखपूर्ण जगत के स्वभाव पर चिन्तन और शुभ, स्थायी और आनन्ददायक मोक्ष के स्वभाव पर चिन्तन- ये दोनों पक्ष शुभ चिन्तन की सामग्री की रचना करते हैं।159
सामायिक को सफलतापूर्वक करने के लिए सात आवश्यकताओं पर विचार अपेक्षित है अर्थात्- स्थान, समय, आसन, ध्यान और तीन प्रकार की शुद्धताएँ- मानसिक, शारीरिक और वाचिक।160 (1) जो
155. राजवार्तिक, 2/7/21, 7
चारित्रसार, पृष्ठ19 156. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 148 157. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 97 158. श्रावकप्रज्ञप्ति, 292 159. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 104 160. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 352
(140)
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