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हिंसक शब्द निन्दनीय वाणी के अन्तर्गत सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त व्यर्थ की गपशप करना, ऐसी भाषा का प्रयोग जो निराधार विश्वासों
और अंधविश्वासों को बढ़ानेवाली हो इसके अन्तर्गत समाविष्ट है।42 (2) आत्मरक्षा के लिए, गृहस्थी चलाने के लिए और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए भाषा का प्रयोग करना पापपूर्ण भाषा के अन्तर्गत सम्मिलित है।43 (3) अप्रिय शब्द वे हैं जो अशान्ति उत्पन्न करते हैं, भय उत्पन्न करते हैं, घृणा प्रज्वलित करते हैं, जो शोक को उत्तेजित करते हैं.
और कलह को भड़काते हैं। सत्याणुव्रत
असत्य के इन प्रकारों में से गृहस्थ उन शब्दों के प्रयोग को पूर्णतया नहीं हटा सकता जो उसके कार्यों से संबंधित है जो उसके व्यवसाय और सुरक्षा से संबंधित है। इस तरह पापपूर्ण भाषा को हटाना अपने और अपने आश्रितों के जीवन को जोखिम में डाले बिना संभव नहीं है, जैसे एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा को त्यागना गृहस्थ के लिए संभव नहीं है। इस प्रकार गृहस्थ को दूसरे प्रकार के असत्यों को त्याग देना चाहिए सिवाय सावध (पापपूर्ण) भाषा के। यह सत्याणुव्रत यां सत्य के व्रत का स्थूल रूप है। यहाँ यह ध्यान देना चाहिए कि सत्याणुव्रत में आचार्य समन्तभद्र ने सत्य न बोलने की अनुमति दी है यदि किसी का जीवन सत्य बोलने से संकट में पड़ता हो। सत्यवादी व्यक्ति को
41. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 96 42. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 96 43. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 97 44. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 98 45. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 101 46. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 55
वसुनन्दी श्रावकाचार, 210 (114) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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