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________________ सम्पूर्ण क्रिया का प्रथम कदम प्रारंभ होता है सम्यग्दर्शन के उषाकाल से, द्वितीय कदम संवर और निर्जरा का सूचक है जब दूसरा कदम उच्चतम अवस्था तक क्रियाशील होता है तब तृतीय कदम मोक्ष को निर्दिष्ट करता है। यह आवश्यक नहीं है कि हम यहाँ संवर, निर्जरा और मोक्ष के कारणों पर विचार करें, क्योंकि गृहस्थ का आचार और मुनि का आचार इन तीन तत्त्वों की प्राप्ति के उदाहरण हैं। मोक्ष के प्रमुख कारण के रूप में सम्यग्दर्शन _ अब हम सम्यग्दर्शन के स्वरूप के बारे में विचार करेंगे। यह आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ है, और यह मोक्षरूपी विशाल भवन का आधार है। 'यशस्तिलक' बताता है कि यह मोक्ष का प्रमुख आधार है जैसे- नींव महल का मुख्य आधार होता है, उत्तम भाग्य सौन्दर्य का आधार होता है, शारीरिक सुख जीवन का आधार होता है, संस्कृति कुलीनवर्ग का आधार होती है और जैसे नीति सरकार का आधार होती है। सम्यग्दर्शन के जरिये सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार यह धर्म का मेरुदण्ड है। धर्म का अर्थ है- आत्मा के स्वभाव में अनवरत ध्यान। 'उत्तराध्ययन' बताता है कि सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शन के • अभाव में अलभ्य रहता है और सम्यक्चारित्र सम्यग्ज्ञान के अभाव में असंभव होता है। . सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र संभव है सम्यग्दर्शन (आध्यात्मिक जाग्रति) की प्राप्ति के पश्चात् .. एक प्रश्न पूछा जा सकता है कि सम्यग्दर्शन के द्वारा सम्यग्ज्ञान कैसे प्राप्त किया जाता है? इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि यद्यपि 54. Yasastilaka and Indian Culture, P. 248 55. Uttarādhyayana, 28/30 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (81) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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