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________________ कषाय की छह प्रकार की प्रगाढ़ता के अनुरूप लेश्या छह प्रकार की होती हैं- तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मन्द, मन्दतर और मन्दतम जो क्रमश: इस प्रकार कही गयी हैं-(1) कृष्ण, (2) नील, (3) कापोत, (4) पीत, (5) पद्म और (6) शुक्ला प्रथम तीन अशुभ हैं और अंतिम तीन शुभ हैं। इसलिए वे क्रमशः पाप और पुण्य उत्पन्न करती हैं।24 छह प्रकार की लेश्याओं का उदाहरण क्रमशः निम्न प्रकार से ऐसे व्यक्तियों के दृष्टिकोण से बताया जा सकता है जो खाने के लिए फल चाहते हैं- (1) वृक्ष को जड़ से उखाड़ने के द्वारा, (2) वृक्ष के तने को काटने के द्वारा, (3) बड़ी शाखाओं को काटने के द्वारा, (4) छोटी शाखाओं को काटने के द्वारा, (5) केवल फल को तोड़ने के द्वारा और (6) धरती पर गिरे हुए फलों को रखने के द्वारा। (घ) संज्ञात्मक (मूलप्रवृत्त्यात्मक) क्रियाओं के रूप में कषाय- ये कषायें न केवल अपने आपको मिथ्यात्व, शुभ और अशुभ भावों के प्रकारों में और लेश्याओं में अभिव्यक्त करती हैं, बल्कि बाहरी वस्तुओं से संबंधित होने के कारण भिन्न-भिन्न नामों को प्राप्त करती हैं। जब लोभ कषाय बाहरी वस्तुओं को देखने से उत्पन्न होती है, तो परिग्रह संज्ञा कहलाती है। उसी तरह आहार, भय और मैथुन संज्ञा क्रमश: भोजन से, भययुक्त वस्तुओं और कामोत्तेजक वस्तुओं से उत्तेजित की जाती है। ये संज्ञाएँ कषायें ही हैं। (ङ) कषाय की अन्य अभिव्यक्तियाँ- ऐन्द्रिय वस्तुओं को भोगने के लिए कषायें इन्द्रियों को उत्तेजित करती है। इससे यह सिद्ध होता है कि 23. षट्खण्डागम, भाग-1, पृष्ठ 388 24. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 488 25. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 506, 507 26. षट्खण्डागम, भाग-2, पृष्ठ 413 Ethical Doctrines in Jainism Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004206
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2010
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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