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के रुप में !) और उसके बाद के याने सन् २००६ के चुनाव में कुछेक ही भारतीय चेहरे नजर आयेंगे ! दूसरी एक बात यह भी है कि सन् २००१ से ईसाईयों का नया सहस्व युग (मिलेनियम) शुरु हो रहा है और भारत में पश्चिमात्यों का राज्य इस शुभ (2) अवसर पर शुरु न हो तो कब होगा? .
मये सहस्व युग की बात पर से एक और गौर करने योग्य बात है। इस युग का स्वागत करने की तैयारी पिछले वर्ष से शुरु हो गई है और पोप महाशय सारे विश्व का दौरा करते हुए ईसाईयों से लगातार कहते आ रहे हैं कि इस अवसर पर चर्च संस्था को अपने पापों की जगत से क्षमा मांगनी चाहिये । किन पापों की क्षमा ? क्षमा माग कर दिल जीतने की अच्छी चाल है, ताकि पिछला हिंसांब साफ करके योजना को बिना किसी आत्मवंचना के बोझ से आगे बढ़ाया जाय।
भारतीय संस्कृति में जमीन, गाय व गाय का दूध -यें तीनों चीजें क्रय-विक्रय की वस्तु नहीं थी । इनका आदान प्रदान यदि होता था तो दान के रुप में ही - मोल-भाव लगाकर नहीं । अंग्रेजों ने अपना राज्य स्थापित करके एक पाई या पैसे प्रति गज के हिसाब से जमीन बेचना शुरु किया । कीमत का महत्व नहीं था, किंतु जमीनें खरीदी और बेची जा सकती हैं, यह सिद्धांत प्रस्थापित करना महत्व का था। इस सिद्धान्त को पुष्ट करने के बाद अब उदारीकरण व वैश्वीकरण के नाम पर भारतीय नागरिक ही नहीं, कोई भी जमीनें खरीद सकता है। जर्मन टाऊनशिप, जापानी टाऊनशिप. टेकनोलोजी पार्क आदि के नाम पर हजारों एकड जमीनें विदेशी खरीद रहे हैं । यदि १०० एकड़ जमीन बिक सकती है, तो १००० एकड़ भी बिक सकती हैं, लाख एकड़ भी बिक सकती है, सिर्फ पैसा चाहिये जो हमें लूट लूट कर पश्चिम के देशों ने खूब इकठ्ठा कर लिया है। यदि तर्क के लिए मान लिया बाय कि सारी जमीन विदेशियों ने दाम देकर खरीद ली, तो भारतीय किस हक से और कौन सी जमीन पर रहेगें ? यदि रह सकेगें तो सिर्फ उनकी मेहरबानी पर, उनके गुलाम बनकर ।
" शासनकर्ता के रुप में भी वही होंगे, अलबत्ता अब भारतीय के रुप में, हमारी और आपकी तरह संविधान से अपना हक पाकर, और तब पूरा होगा एक नये अमरिका का निर्माण ।
इस दीर्घकालीन षडयंत्र का एक और पहलू है - इस देश का नामकरण । इस देश का अपना मूल नाम है 'भारत' - भरत राजा के नाम पर । हिन्दु प्रजा का देश होने के नाते दूसरा नाम है - हिन्दुस्तान । किन्तु उसे भी बदल कर 'ईन्डिया' बन गया, कैसे ? नाम बदलने की सत्ता कैसे आयी - वही स्वयंभू स्वामित्व ! हमारे संविधान में पहली ही पंक्ति में दो बार 'इन्डिया' शब्द का प्रयोग करके इस नामकरण को सदा के लिए पुष्ट कर लिया गया है। यदि हम सचमुच स्वतंत्र होते तो क्या अपना 'नाम'निशान यूँ मिटता? ...
इतना सब होने पर भी अभी मूल उद्देश्य तो सर्वथा सिद्ध नहीं हुआ है - "एक प्रजा, श्वेत प्रजा, एक धर्म, ईसाई धर्म" । प्रजा के नाश के लिए उसे भुखमरी, गरीबी की तरफ धकेला जा रहा है, ताकि सोमालिया और इथियोपिया की तरह प्रजा का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाये । गरीबी से बचने वाले सभांत हिस्से को सांस्कृतिक रुप से इतना पतित किया जा रहा है कि मानव के रुप में उनका अस्तित्व कोई अर्थ न रखे । एक तरफ से चर्च संस्था परिवार नियोजन का विरोध करती हैं - ताकि श्वेत प्रजा की निरंकुश वृद्धि होती रहे, जो भारत जैसे देशों में बस सके, और दूसरी तरफ भारत की विस्फोटक' जनसंख्या की दुहाई देकर परिवार नियोजन का विराट कार्यक्रम 'यूनिसेफ', 'डब्ल्यू.एच.ओ.' वगैरह के माध्यम से चलाया जा रहा है जिसके लिए कराड़ों की धनराशि सहायता रुप में दी जा रही है। यदि भारत की जनसंख्या के आंकड़ों की समीक्षा की जाये तो आयु प्रमाण में बड़ी आयु के लोगों का प्रमाण निरंतर बढ़ता जा रहा है और युवा लोगों का प्रमाण कम होता जा रहा है । किसी भी अन्यायी . परिस्थिति का विरोध - विद्रोह युवा पीढ़ी ही कर सकती है । इसलिए योजना एसी बनायी जा रही है कि जब इस षडयंत्र का Final Assault हो तब देश में युवा पीढ़ी बिल्कुल कम हो और देश पर अंतिम प्रहार किया जा सके । परिवार नियोजन के पीछे यह भेद है - अन्यथा परम करुणामयी धरती माता की तो यह क्षमता है कि आज की विश्व की कुल आबादी से दुगनी आबादी
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