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कांग्रेस के नेताओं के माध्यम से स्वतंत्रता की मांग को लेकर आन्दोलनों का सिलसिला शुरु किया गया । स्वतंत्रता की मांग को अस्वीकार करके उसकी तीव्रता बढाई गई। नेताओं पर दमन करके प्रजा में उनकी छबी उभारी गई ताकि महाजन संस्था के स्थान पर नेतागिरी का यह नया स्वरुप पुष्ट होता जाये । नेताओं मे फूट डालकर, अलग अलग विचारधाराओं को पुष्ट करके भविष्य में अनेक राजनैतिक पक्ष बनें, उसकी नींव रखी गयी । भविष्य में स्थानीय लोगों द्वारा चलाई जाने वाली शासन व्यवस्था की नींव रखने के लिए सन् १९३५ में Government of IndiaAct बनाया गया । इसी Act को आगे चलकर भारत के नये संविधान का आधार बनाया गया। "
सन् १९३५ के Govt. of India Act के तहत १९३७ में चार प्रदेशों में प्रायोगिक रुप से फिर से चुनाव हुए और द्वितीय विश्व युद्ध शुरु होने पर इन प्रदेशों की धारा सभाओं को अचानक भंग कर दिया गया । सन् १९३९ में द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन का साथ देने की शर्त पर स्वाधीनता का वचन दिया गया जिसे १९४२ में युद्ध समाप्त होने पर न पालने की बात की गयी। स्वतंत्रता की माँग को इस तरह और तीव्र बनाया गया और 'भारत छोड़ो' आंदोलन करवाया गया।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापित 'लीग ऑफ नेशन्स' को भंग करके द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सन् १९४५ में "युनाईटेड नेशन्स" की स्थापना हुई जो अभी अपनी स्थापना के ५० 'सफल' वर्ष मना रही है!) भारत स्वतंत्र राष्ट्र न होते हुए भी उसे युनाईटेड नेशन्स का सदस्य बना दिया गया और इस तरह एक पिंजरे से मुक्ति के पहले ही उसे दूसरे पिंजरे में प्रवेश करा दिया गया । भारतीय संस्कृति में परमात्मा का स्वरुप निर्गुण, निराकार है। यूनो का पिंजरा भी वैसा ही निर्गुण, निराकार है, और जैसे आत्मा शाश्वत है, इस पिंजरे की गुलामी भी शाश्वत है !
१९४२ और १९४७ के बीच में गौहत्या व अन्य मामलों पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच भंयकर दंगे करवा कर इतनी घृणा फैलायी कि एक हजार वर्षों से भाईयों की तरह एक समाज में साथ साथ रहने वाले हिन्दु और मुसलमान, स्वतंत्रता मिलने पर एक राष्ट्र में साथ रहने को तैयार नहीं थे । बाहरी तौर पर दो राष्ट्रों के निर्माण का विरोध करते रह कर उस मांग को और पुष्ट किया और नेताओं में फूट डालने के लिए कांग्रेस व मुस्लिम लीग से अलग अलग मंत्रणायें की।
राजनैतिक क्षेत्र में हिन्दु-मुसलमान के बीच फूट तो डाली गयी थी सन् १९०९ में, जब चुनाव प्रक्रिया के लिए मुस्लिमों की अलग Constituency बनायी गयी थी - 'मॉली मिन्टो सुधार' के तहत । योजनाबद्ध कार्यशैली का और क्या प्रमाण चाहिये?
प्रमाण की बात पर एक और प्रमाण की याद आयी। हालाँकि इतिहास के कालक्रम में यह बात कुछ पीछे की है। सन् १६६१ में पोटुंगल के राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ब्रिटन के राजकुमार से होने पर बम्बई का टापू दहेज में दिया था । बम्बई के टापू का स्वामित्व पोर्टूगल के राजा के पास कैसे आया ? वही स्वयंभू स्वामित्व !! यह टापू बाद में विटन के राजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी को 'लीझ' पर दे दिया ! खैर इतिहास के कालक्रम में वापस चलें। " आजादी देने के पूर्व सन् १९४६ में ही भारत का नया संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान बनाने के लिए British Cabinet Mission ने मार्गदर्शक रुप रेखा दी और जिसे Steel Frame कहा जाता है वैसा संविधान बनाया। किसने माँगा था यह संविधान, कैसे प्रतिनिधी थे वे जिन्होंने यह संविधान बनाया, क्या वैधता है Independence of India Act 1947 की, वगैरह मुद्दे तो एक विस्तृत निबंध का विषय बन सकते हैं।
अंततः१५ अगस्त १९४७ को देश को दो टुकड़ों में बाँट कर आजादी देने के नाटक के साथ इस षड़यंत्रकारी योजना का तीसरा चरण पूरा हुआ।
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