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जब युनो और उसकी अनेक शाखायें जगत की अश्वेत प्रजाओं के आसपास गुलामी का फंदा ज्यादा से ज्यादा कसने की नीतियाँ बना रहे हैं, और उसे अमल में ला रहे हैं, प्राकृतिक सिद्धांतों के आधार पर बनाये हुये न्याय का सरेआम भंग कर रहे हैं, गरीबी और भूखमरी बढ़ाने की नीतियाँ अमल में ला रहे हैं, वायु-जल-जमीन दूषित हो ऐसी औद्योगिक आदि नीतियाँ बना रहे हैं, तब इस परिषद में शामिल धर्मगुरु उसी युनो के साथ हाथ मिला कर जगत में से इन दूषणों को किस प्रकार दूर करेंगे ?
विश्व में फिलहाल कौन सी परिस्थिति विद्यमान है उसकी उपरोक्त असार जानकारी देने के बाद परिषद के धर्मगुरु अब आघातजनक कदम उठा रहे हैं। ऊपर प्रस्तावना में जो अस्पष्टताएँ है, उसका युनो से खुलासा मांगे बिना परिषद के धर्मगुरु किस तरीके से युनो जैसी राजकीय संस्था के साथ हाथ मिलाने की वचनबद्धता प्रकट कर रहे हैं?
क्या जगत के धर्मगुरु जगत में वास्तविक विश्व शांति स्थापित करने में सक्षम नहीं है ? किसलिए उनको जगत में अशांति फैलानेवाली युनो सं था के सहारे शांति स्थापित करने के स्वप्न देखने चाहिए ? युनो के नेतृत्व तले शांति स्थापित करनी हो तो जगत में से धर्मभेद (अलग अलग धर्म) और रंगभेद (अलग अलग रंगों की प्रजा) को खत्म करना होगा। क्या परिषद के धर्मगुरुओं को यह मान्य है ? ___ उद्घोषणा के सभी अनुच्छेद मात्र शब्दों की शोभा बढ़ानेवाली - आडंबरयुक्त भाषा है, जो मात्र कान को सुनने में मीठी लगे वैसी है। युनो के नेतृत्व तले मानव समाज के प्रति कोई भी जिम्मेदारी जगत के धर्मगुरु निभा ही नहीं सकते।
मानव समाज के प्रति धर्मगुरुओं को यदि अपनी जिम्मेदारी निभाना हो तो जगत में चार पुरुषार्थ की नींव पर खड़ी संस्कृति को लागू करवाने में युनो का सहकार मांगना चाहिए। युनो को चार पुरुषार्थ की संस्कृति के विनाश की योजनायें बनाने और उसे लागू करवाने के कार्यक्रमों को छोड़ने के लिये बाध्य करना चाहिए। यदि एसा हो जाय तो फिर जगत के धर्मगुरुओं को और कुछ भी करने को नहीं रहेगा क्योंकि चार पुरुषार्थ की आर्य जीवन व्यवस्था ही मानवप्रजा का रक्षण करने में और उसको सन्मार्ग की तरफ ले जाने में सक्षम है। युनो द्वारा निर्मित अनार्य जीवन व्यवस्था के अमल से और उसको सहारा देने से विश्व शांति प्रस्थापित होने की बजाय अशांति ही बढ़ेगी, गरीबी बढ़ेगी, महंगाई बढ़ेगी, भूखमरी बढ़ेगी और अनेक प्रकार के जुल्मों की झड़ी अश्वेत प्रजा पर बढ़ती ही जायेगी। __भारत के महासंतों द्वारा जगत को भेंट दी हुयी चार पुरुषार्थ की नींव पर खड़ी आर्य जीवन-व्यवस्था ही विश्व में वास्तविक शांति स्थापित करने का अमोघ और एकमात्र साधन है। इस व्यवस्था के अमलीकरण में आनेवाले अवरोधों को दूर कर उसका अचूक अमलीकरण यही जगत के धर्मगुरुओं का और खास करके भारत के धर्मगुरुओं का मानवजाति के प्रति पवित्र कर्तव्य है। मानवजाति के प्रति उनको यह कर्तव्य निभाने के लिये कटिबद्ध होना चाहिए, न कि युनो जैसी संस्कृतिभक्षी संस्था के साथ colloborate करने का स्वप्न में भी विचार करना चाहिये।
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