________________
युनाईटेड नेशन्स नाम की संस्था को मानव जाति के (सभी मानवों के) गौरव की रक्षा में, न्याय की रक्षा में, जगत में सच्ची शांति की स्थापना में कोई रस है ही नहीं। उल्टे इन तीनों चीजों का अस्तित्व खतरे में पड़ें इसी आशय से इस संस्था की उत्पत्ति सन् १९.४५ में यूरोपियन राजनैतिक नेताओं ने (धार्मिक नेताओं ने नहीं) की है, और उसी दिशा में आज तक के उसके सारे प्रयास रहे हैं। भारत के धर्मगुरुओं को अध्यात्मवाद पर आधारित तत्त्वों की रक्षा में जिम्मेंदारीपूर्वक का रस है; जबकि यूनो को हिंसा व शोषण पर आधारित भौतिकवादी तत्त्वों और व्यवस्थाओं को सारे जगत में फैलाने में रस है। अलबत्त इस बात को आज गुप्त रखा जा रहा हैं, क्योंकि भौतिकवाद के आधार का न्याय, मानव गौरवं तथा शांति फैलाने में अध्यात्मवाद को समर्पित भारत के धर्मगुरुओं के सहकार की यूनो को अभी दरकार है। ... ..यूनो भौतिकतावादी बल है, भारत के धर्मगुरु अध्यात्मवादी बल हैं। इस दोनों बलों का मेल असंभव है। ये दोनों बल एक मंच पर साथ बैठ कर काम कर ही नहीं सकते। ...
.. तदुपरांत यूनो शुद्ध धार्मिक संस्था नहीं है। भारत की धर्मगुरु-संस्था शुद्ध धार्मिक संस्था है। इसलिये भी इन दोनों का एक मंच पर इकट्ठे आना संभव नहीं। .. ..... ... भारत और जगत के सभी धर्मगुरुओं को यूनो के सच्चे स्वरुप को पहचान लेना चाहिये। उसके मीठे और
पकेदार वाणी-विलास से या आडंबर भरी परिषदों के आयोजन से प्रभावित नहीं हो जाना चाहिए। अध्यात्मवाद की नींव पर रंची गयी धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक व राजकीय व्यवस्थाओं को नष्ट करके, भौतिकवाद की नींव पर रंची गयो धार्मिकं आदि व्यवस्थाओं को जगतभर में फैलाने के लिये यह संस्था कार्य कर रही है। "नयी दिशा'' का अर्थ है भौतिकवाद की नींव पर बनाई गई.जीवन व्यवस्था। ..... .. - प्रस्तावना के अनुच्छेद तीन व चार में कहा गया है. 'whereas.religions have contributed to the peace of the world, but have also been used to create division and fuel hostilities'
. "Whereas our world is plagued by violence, war and destruction, which are sometimes perpetrated in the name of religion. i
. किसी व्यक्ति ने, व्यक्तिओं के समूह ने धर्म का या उसके संस्थापक का उपयोग मानवजाति को विभक्त • करने में, या अत्याचार करने में किया हो तो उसमें उस व्यक्ति का या व्यक्तिओं के समूह का दोष है। इनके 'कुकृत्यों के लिए धर्म को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। विश्व का अन्ततोगत्वा कल्याण ही हो एसे उपाय बताने " नाली धर्मसंता पर व्यक्तियों के दोषों का आरोपण करना यह तो.धर्म महासत्ता पर ही अत्याचार करना हुआ। • आत्मा के विकास में सहायक धर्म महासत्ता के प्रभाव से ही हिंसा व युद्धों से घेर लिये गये वर्तमान विश्व में आज."
भी परोपकार वृत्ति, दया, अनुकंपा, क्षमा वगैरह सद्गुण उभर रहे हैं। ..... .... जिस व्यक्ति या व्यक्तिओं के समूहों ने धर्म के नाम का उपयोग जगत की मानवजातियों के विभाजन
करने के लिये ही नहीं, अपितु मानवों कि जातियों की जातियों का नाश करने में, मानवजाति पर जुल्म व - अत्याचार की झंड़ियाँ बरसाने में किया हो, उसमें वेटिकन चर्च का नाम मुख्य रूप से उभर कर आता है। ..
... ईसा मसीह ने या उनके द्वारा स्थापित ईसाई धर्म ने मानवजाति को नुकसान नहीं पहुँचाया है। हाँ, ईसा 'मसीह के नाम पर, उनके आदेश के विरुद्ध जाकर, वेटिकन नामक चर्च संस्था ने पिछले पांच सौ वर्षों में मानव • जातियों के निकंदन का, उन पर जुल्म और अत्याचार की. झंड़ियाँ बरसाने का पिशाची कृत्य किया है, जिसके लिये वेटिकन चर्च को सारे विश्व की-क्षमा भी माँगनी पड़ी है। वेटिकन चर्च के इस पाप का बोझ ईसा मसीह पर, ईसाई धर्म पर या जगत के अन्य धर्मों पर नहीं डाला जा सकता।
__(35) For Personal Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org