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'मानवजाति आज संकटपूर्ण स्थिति में आ पड़ी है' - यह विधान वर्तमान परिस्थिति की जानकारी तो देतां है। परंतु इस परिस्थिति को जन्म देने वाले कारण क्या हैं ? ये कारण सत्य हैं या झूठे? इसकी पूरी जाँच किये बिना अंगले कदमों के बारे में कैसे विचार हो? जिन कारणों से यह परिस्थिति निर्मित हुई है उन कारणों को दूर करने से क्या पूर्ववत् सुस्थिति की स्थापना नहीं हो सकती? क्यों नहीं हो सकती? भूतकाल में मानवजाति एसी संकटपूर्ण स्थिति में आयी थी? क्यों नहीं आयी थी? और अगर आयी थी तो उस स्थिति से बाहर निकलने के लिये क्या उपाय किये गये थे? वही उपाय क्या आज नहीं किये जा सकते? क्यों नहीं किये जा सकते? ___"मानवजाति आज संकटपूर्ण स्थिति में है" - यह विधान ही प्रामाणित करता है कि मानवजाति एसी विकट स्थिति में पहले कभी नहीं आयी थी। इसका कारण था- भारत के महासंतों द्वारा मोक्ष के लक्ष के साथ रची. " गयो चार पुरुषार्थों की नींव पर आधारित जीवन व्यवस्था - संस्कृति, जो सारे विश्व में थोड़े या अधिक अंशों में सर्वत्र
लागू थी। यूरोपियन राजनैतिक विद्वानों द्वारा फैलाये गये झूठ के अनुसार यह संस्कृति मात्र ५००० वर्ष पूरानी नहीं है। लाखों वर्ष पूर्व इस संस्कृति की रचना हुई है और लाखों वर्षों से उसका अस्तित्व टिका हुआ है, यही तथ्य इस संस्कृति की विश्व कल्याणकारिता को साबित करता है।
सत्य वात तो यह है कि पिछले ५.०० वर्षों से वेटिकन चर्च द्वारा ईसा और शोषण की नींव पर टिकी अनार्य जीवन व्यवस्था उत्पन्न की गयी है और उसके विश्व व्यापी अमलीकरण द्वारा आर्य जीवन व्यवस्था के अमल में गंभीर गड्ढे पड़ने लगे हैं। इसके फलस्वरुप ही मानवजाति आज विकट परिस्थिति में आन पड़ी है। इस. डकीकत को छुपा कर मानवजाति के लिये "नवी दिशा" तय करने के प्रयास में सहायक बनने के लिये धार्मिक. व आध्यात्मिक नेतागिरी की आवश्यकता बताई जा रही है।
प्या अर्थ है इस "नयी दिशा'' का? वास्तव में नयी दिशा तय करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। वेटिक्सन दारा फैलायी गयी अनार्य जीवन व्यवस्था का अमलीकरण जगत भर में समाप्त करवा कर मानवजाति. को समय की कसौटी पर खरी उतरने वाली विश्व कल्याणकर आर्य जीवन व्यवस्था के अमल की ओर ले जाने की आवश्यकता है और इस भगीरथ कार्य की जिम्मेदारी भारत के धर्मगुरु तत्काल निभाना शुरु कर दें, यह जारी है।
जगत भर के धर्मगुरुओं को नयी दिशा निश्चित करने की या किसी अन्य द्वारा तय की गयी दिशा-शून्य नयो दिशा की और जगत को ले जाने की जिम्मेदारी उठाने की कोई आवश्यकता नहीं है। उनकी जिम्मेदारी तो अध्यात्मवाद की नींव पर खड़ी विश्व कल्याणकर आर्य जीवन व्यवस्था की पुन: प्रतिष्ठा करने की है।
इस उद्घोषणा की शुरुआत में "धार्मिक और आध्यात्मिक नेता" ऐसे दो विभाग क्यों किये गये हैं? क्या धार्मिक नेता आध्यात्मिक नेता नहीं हैं ? मानव के आध्यात्मिक विकास के लिये ही तो धर्म की उत्पत्ति हुई है। धर्मगुरु इस विकास में सहायक वनते हैं, मार्गदर्शक बनते हैं। अत: धर्मगुरु ही आध्यात्मिक नेता भी हैं। तो फिर "आध्यात्मिक नेता" शब्द प्रयोग करने के पीछे उद्घोषणा तैयार करने वालों का क्या प्रयोजन है ? इस बात . का स्पष्टीकरण होना चाहिए।
अव उद्घोषणा की चर्चा करें ...उद्घोषणा की प्रस्तावना के पहले अनुच्छेद में लिखा है 'whereas the United Nations and the religions of the World have a common concern for human dignity, justice and peace' .
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