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________________ नये संविधान की रचना क्यों हुई ? सारा नया संविधान चार पुरुषार्थों पर आधारित जीवनव्यवस्था को पलट देने के उद्देश से ब्रिटिशरों ने बनवा लिया है। नया संविधान देश के उदय (प्रजा के नहीं!) की दृष्टि से और बाहर से आनेवाली श्वेत प्रजा के हित की दृष्टि से रचवाया गया है। यह उनके लिये अवश्य ही आशिर्वाद समान है और उनके दृष्टिकोण से प्रशंसा पात्र तथा प्रगतिशील भी है। किंतु हिन्दु प्रजा के हितों की रक्षा के दृष्टिकोण से बहुत कुछ विचारने योग्य है । भारत में हिन्दू प्रजाजनों के हजारों स्वतंत्र हित हो सकते हैं। किन्तु "भौलिक अधिकारों" के नाम से निक प्रजा के कुछेक सीमित अधिकार ही नये संविधान में शामिल किये गये हैं। इसका अर्थ यह होता है कि अन्य जो कोई भी अधिकार हों, वे सभी रद्द माने जाते हैं। जो भी हिन्दू ( हिन्दुस्तान में रहनेवाले मूल प्रजाजन ) संविधान द्वारा मान्य नये हितों से/अधिकारों से खुश हैं और इस कारण संविधान के प्रति वफादारी भरी ममता रखते हैं, वे अन्य अधिकारों के रद्द होने में सहमत हैं और इस तरह वे अपने सह-प्रजाजनों के हित के विरुद्ध हैं, यह स्वयमेव निश्चित हो जाता है। अपने सह-प्रजाजनों के अनेकों हित रद्द कराये उन्हे अपने सह-प्रजाजनों का हितैषी कैसे माना जा सकता है ? हालाँकि, नये संविधान को मानने वालों का एसा आशय न होते हुए भी, विदेशियों द्वारा हिन्दुस्तान की मूल प्रजा के अधिकारों की मर्यादा स्वीकार लेने में वे ठगे ही गये हैं और इस तरह स्वंय पर भी अन्याय कर रहे हैं। इतना ही नहीं, समस्त हिन्दु प्रजा तथा समस्त अश्वेत प्रजा को भी अन्याय का भोग बनाते हैं। विदेशों में उनकी महत्ता व प्रशंसा का मुख्य कारण यही है । सर्वप्रथम तो यह समझ लेना आवश्यक है कि भारत की प्रजा को नये संविधान की आवश्यकता ही नहीं थी। आज भी नहीं है। पारंपरिक संविधान व उससे संलग्न कानून हिन्दू प्रजा के पास हैं। आवश्यकता हो वहाँ उन्हे ठीक-ठाक किया जा सकता है। नया संविधान बनाने की जरूरत ही नहीं थी। नये संविधान की रचना भी `विदेशियों ने परदेशी संविधानों के आधार पर की है और इस देश के कानूनविदों की सहानुभूति से नया संविधान बनवा लिया है। वास्तव में संविधान का उद्देश्य इस प्रकार होना चाहिये " मानवजाति के लिये धर्म-अर्थ- काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की अहिंसक संस्कृति का जीवन ही आदर्श है और हर तरह से इस आदर्श को टिकाये रखना है " इतना संक्षिप्त उद्देश ही पर्याप्त था । - किंतु उसके बदले निम्नलिखित लंबा, संदिग्ध और भ्रामक उद्देश्य नये संविधान में लिखा गया : आमुख हम, भारतीय प्रजाजन, भारत को एक सार्वभौम, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, गणतंत्र के रूप में स्थापित करने का तथा उसके सभी नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, मान्यता, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता, दरज्जे व मौके की समानता, प्राप्त हो वैसा करने का और सभी नागरिकों में व्यक्ति का गौरव, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुदृ हो वैसा बंधुत्व विकसित करने का गंभीरतापूर्वक संकल्प करके हमारी संविधान सभा में २६ नवंबर, १९४९ को यह संविधान अंगीकार करके, उसे अधिनियमित करके, स्वयं को अर्पण करते हैं। Jain Education International (9) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004203
Book TitleMananiya Lekho ka Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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