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________________ [6] आनंद श्रावक ने प्रतिज्ञा की - "मैं अन्ययूथिकादि को मान सम्मान नहीं दूंगा, बिना बोलाये बोलूंगा नहीं और उन्हें आहारादि का भी निमंत्रण नहीं दूंगा।" इससे यह स्पष्ट ध्वनित होता है कि व्रतों की महत्ता सम्यक्त्व के पीछे रही हुई है। यानी सम्यक्त्व है तो ही श्रावकपना है और सम्यक्त्व है तो ही साधुपना, बिना सम्यक्त्व के व्रतों का कोई महत्त्व नहीं। . दूसरी घटना उनके संथारे के समय की है। संथारे के दौरान धर्म के विशिष्ट चिंतन और उज्ज्वल परिणामों के कारण अवधिज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से उन्हें जब अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ जिससे वे पूर्व पश्चिम और दक्षिण दिशा में लवण समुद्र में पांच सौ योजन तक और उत्तर में चूलहिमवान् पर्वत तक देखने लगे। ऊपर में सौधर्म देवलोक और नीचे रत्नप्रभा पृथ्वी के लोलुच्युत नरकावास को देखने लगे। उसी बीच भगवान् महावीर स्वामी का वाणिज्यग्राम पधारना हुआ। गौतम स्वामी भगवान् की आज्ञा लेकर बेले के पारणे के लिए ग्राम में गोचरी पधारे। उन्होंने बहुत से मनुष्यों से सुना कि आनंद श्रावक पौषधशाला में संलेखना संथारा किया हुआ है। अतएव गौतम स्वामी उन्हें दर्शन देने हेतु वहाँ गये। गौतम स्वामी के पधारने से आनंद श्रावक बहुत हर्षित हुआ और अपने अवधिज्ञान की बात उन्हें कही। गौतम स्वामी ने कहा कि श्रावक को अवधिज्ञान तो हो सकता है, पर इतने विस्तार वाला नहीं हो सकता है। इसलिए हे आनंद ! तुम इस बात का दण्ड-प्रायश्चित्त लो। आनंद श्रावक बोला - 'हे भगवन्! क्या जिनशासन में सत्य और यथार्थ भावों के लिए भी आलोचना और प्रायश्चित्त होता है?' गौतम स्वामी ने कहा - 'आनंद ऐसा नहीं है।' तब आनंद श्रावक बोला तो फिर भगवन् ! आपको स्वयं को दण्ड प्रायश्चित्त लेना चाहिये। आनंद का यह कथन सुनकर गौतम स्वामी के मन में शंका उत्पन्न हुई। अतः भगवान् के पास आकर सारा वृत्तान्त सुनाया। भगवान् ने कहा - हे गौतम! आनंद श्रावक का कथन सत्य है। अतः वापिस आनंद श्रावक के पास जाकर क्षमा मांगो और इस बात का प्रायश्चित्त लो। गौतम स्वामी बिना पारणा किये आनंद श्रावक के यहाँ क्षमा मांगने गये। इसे कहते हैं श्रावक की दृढ़धर्मिता एवं स्पष्टवादिता, आज के परिप्रेक्ष्य में यह अनुकरणीय है। कामदेव श्रावक - चंपानगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उस नगरी में कामदेव नामक एक ऋद्धि सम्पन्न सेठ रहता था। उसकी धर्मपत्नी का नाम भद्रा था। आनंदश्रावक की तरह वह भी नगर प्रतिष्ठित एवं राजा और प्रजा के लिये मान्य था। . एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का वहाँ पधारे। कामदेव भगवान् के दर्शन करने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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