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________________ ___[5] अन्य आगमों में भी उत्कृष्ट विशिष्ट श्रमणोपासक का वर्णन आया है - जैसे अंतगडदशा सूत्र में सुदर्शन श्रमणोपासक का, भगवती सूत्र में तुंगिका के श्रमणोपासक, शंख-पुष्कलि, मुद्रक, पिंगल, ऋषिभद्र आदि का, ज्ञाताधर्मकथांग में सुबुद्धि, अरणिक, मण्डुक आदि का, राजप्रश्नीय में चित्तसारथी का, औपपातिक में अम्बड़ तथा उनके सात सौ शिष्यों का, निरयावलिका सूत्र में चेटक आदि का वर्णन है जिनके प्रत्येक आत्म-प्रदेश में धर्म का गाढ रंग चढ़ा हुआ था। इस सूत्र का नाम दशांग होने के कारण दस अध्ययन हैं। साथ ही सभी दस श्रावकों की समान दीक्षा पर्याय समान अवधिज्ञान, प्रतिमा आराधना सभी का उत्पाद प्रथम देवलोक, चार पल्योपम की स्थिति आदि में समानता होने से इस सूत्र में दस श्रावकों का ही वर्णन है। इस सत्र में वर्णित भगवान महावीर स्वामी के दस श्रमणोपासकों का वर्णन पढ़ते हैं तो उनकी उत्तम साधना के साथ उनकी स्पष्टवादिता, दृढ़ आत्मबल आदि के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उनकी दृढ़ता एवं सिद्धान्त प्रियता की स्वयं भगवान् ने अपने श्री मुख से प्रशंसा की है। ऐसे श्रमणोपासकों का जीवन चारित्र वर्तमान हीयमान युग के श्रावक वर्ग के लिए प्रेरणास्पद है। उन श्रेष्ठ श्रमणोपासकों का विस्तृत जीवन वर्णन तो इस सूत्र के पारायण से पता चलेगा। पर उन आदर्श श्रमणोपासकों के जीवन की जो विशेष घटनाएं, जिसके कारण भगवान् के श्रीमुख से उनकी प्रशंसा की गई। उनका संक्षिप्त में यहाँ वर्णन किया जा रहा है - आनंद श्रमणोपासक - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में भारत भूमि में वाणिज्य ग्राम था। वहाँ जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसी नगर में आनंद नाम का सेठ रहता था। जो ऋद्धि सम्पत्तिशाली था। जिसकी नगर में बहुत प्रतिष्ठा थी। यानी लोगों के लिए मेढीभूत था। राजा भी अपने राजकार्यों में समय-समय पर उनकी सलाह लिया करता था। उनकी पत्नी का नाम शिवानंदा था। एक बार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वाणिज्यग्राम के बाहर उद्यान में पधारे। देवताओं ने भगवान् के समवसरण की रचना की। सभी लोग भगवान् के दर्शनार्थ गये। आनंदजी भी गये। भगवान् का उपदेश सुनकर आनंदजी ने श्रावक के बारहव्रत ग्रहण किये जिसका वर्णन इस अध्ययन में किया गया है। आनंद श्रावक के इस अध्ययन के अवलोकन से मुख्य दो विशेष बातें सामने आती है। ___ आनंद जी, भगवान् से श्रावक के बारहव्रत स्वीकार कर जब श्रमणोपासक बने तो भगवान् ने बारहव्रतों में लगने वाले अतिचारों का बाद में खुलासा किया, सबसे पहले सम्यक्त्व का स्वरूप बताकर इसमें लगने वाले अतिचारों (दोषों) से बचने का उपदेश दिया। जिसके फलस्वरूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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