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________________ २८ भावार्थ तैल के सिवाय शेष अभ्यंगन विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।' ५. तत्पश्चात् उद्वर्तन विधि का परिमाण करते हैं उबटन विधि का त्याग करता हूँ।' विवेचन - अभ्यंगन का अर्थ है 'मालिश', शतपाक के तीन अर्थ उपलब्ध होते हैं - १. सौ बार जो अन्य औषधियों सहित पकाया गया हो। २. सौ वस्तुएं जिनमें मिली हों ३. जिसके निर्माण में सौ स्वर्ण मुद्राएं व्यय की गई हों। शरीर के मल को दूर कर निर्मल बनाने वाले द्रव्य पीठी आदि जिनमें तेलादि स्निग्ध पदार्थों का मिश्रण होता है, उसे 'उद्वर्तन - विधि' कहते हैं। आठ सुगंधित वस्तुओं को मिला कर बनाई गई वस्तु 'सुगन्धित गन्धाष्टक' कही जाती है। तयाणतरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेड़, 'णण्णत्थ अट्ठहिं उट्टिएहिं उदगस्स घडएहिं, अवसेसं मज्जणविहिं पच्चक्खामि ३' | - Jain Education International श्री उपासकदशांग सूत्र ४. तदनन्तर अभ्यंगन विधि का परिमाण करते हैं - - - कठिन शब्दार्थ - मज्जणविहि स्नान विधि, अट्ठहिं - आठ, उट्टिएहिं - औष्ट्रिक ऊंट के आकार के जिनका मुंह संकड़ा गर्दन लम्बी और आकार बड़ा हो, उदगस्स पानी के, घडएहिं - घड़े । भावार्थ ६. इसके बाद स्नान विधि का परिमाण करते हैं- "मैं प्रमाणोपेत आठ घड़ों से अधिक जल का स्नान में प्रयोग नहीं करूँगा ।' विवेचन - "उट्टिएहिं उदगस्स घड़एहिं" - ऊँट के चमड़े से बनी कूपी, जिसमें घी- तेल भरा जाता था, वैसे आकार का मिट्टी का घड़ा तथा जिसका माप उचित आकार के घड़े में समाए जितने जल-प्रमाण होता था, ऐसे आठ घड़े प्रमाण जल से अधिक का आनंदजी ने त्याग कर दिया था। सामान्य स्नान में तो वे इससे भी कम जल का प्रयोग करते थे । तयाणंतरं च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ, 'णण्णत्थ एगेणं खोमजुयलेणं, अवसेसं वत्थविहिं पच्चक्खामि ३' | कठिन शब्दार्थ - वत्थविहि वस्त्र विधि, खोमजुयलेणं - क्षोम युगल-सूती कपड़े - - 'मैं शतपाक - सहस्रपाक For Personal & Private Use Only 'मैं गंधाष्टक चूर्ण के सिवाय शेष जोड़ा। भावार्थ ७. तदनन्तर वस्त्र विधि का परिमाण करते हैं- मैं एक क्षोमयुगल - सूती जोड़े के सिवाय शेष वस्त्र विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ । - www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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