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________________ प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रत-ग्रहण २६ विवेचन - यहाँ एक जोड़े का यह अर्थ नहीं समझना कि उसी जोड़े को धोते व पहनते थे। यहाँ एक का अर्थ है सिर्फ एक जाति का जोड़ा खुला रखा यानी सूती कपड़े के सिवाय शेष सभी ऊनी, रेशमी आदि जाति के कपड़ों का आनंदजी ने त्याग किया था। तयाणंतरं च णं विलेवणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ अगरुकुंकुमचन्दणमादिएहिं, अवसेसं विलेवणविहिं पच्चक्खामि ३'। ___कठिन शब्दार्थ - विलेषणविहि - विलेपन विधि, अगरुकुंकुम चंदणमाइएहिं - अगर, कुंकुम, चंदन आदि द्रव्यों से। भावार्थ - ८. तत्पश्चात् विलेपन विधि का परिमाण करते हैं - "मैं अगर, कुंकुम और चंदन आदि के अतिरिक्त शेष विलेपन विधि का त्याग करता हूँ।" । तयाणंतरं च णं पुप्फविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगेणं सुद्धपउमेणं मालइकुसुमदामेणं वा, अवसेसं पुप्फविहिं पच्चक्खामि ३'। कठिन शब्दार्थ - पुप्फविहि - पुष्पविधि, सुद्धपउमेणं - शुद्ध पद्म का फूल, - श्वेत कमल, मालइकुसुमदामेणं - मालती फूल माला। - भावार्थ - ६. तदनन्तर वे पुष्पविधि परिमाण - फूल एवं फूलमालाओं की मर्यादा - करते हैं - मैं श्वेत कमल एवं मालती के फूलों की माला के सिवाय शेष पुष्पविधि का प्रत्याख्यान करता हूँ। ___तयाणंतरं च णं आभरणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ मट्ठकण्णेजएहिं णाममुद्दाए य, अवसेसं आभरणविहिंपच्चक्खामि ३'। कठिन शब्दार्थ - आभरणविहि - आभरणविधि, मट्ठकण्णेजएहिं - मृष्ट-कोमल स्पर्श वाले कान में पहिने जाने वाले गहने-कुण्डल (मुरकियां) तुगलें आदि, णाममुद्दाए - नामांकित मुद्रिका (अंगूठी)। भावार्थ - १०. तत्पश्चात् वे आभरण विधि परिमाण-गहनों की मर्यादा करते हैं - मैं कानों के कुण्डल एवं नामांकित मुद्रिका के अतिरिक्त शेष आभरण विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ। तयाणंतरं च णं धूवणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ अगरुतुरुक्कधूवमाइएहिं, अवसेसं धूवणविहिं पच्चक्खामि ३'। कठिन शब्दार्थ - धूवणविहिपरिमाणं - धूपन विधि परिमाण-अगरबत्ती लोबान आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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