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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रत-ग्रहण
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की सामग्री गिनी जाती है, जैसे भोजन पानी आदि। बार-बार काम में लेने योग्य वस्तुएं परिभोग की सामग्री गिनी जाती है जैसे - पलंग, बिस्तर, गहना, पेन, जूता, कार आदि। आनंद श्रमणोपासक उपभोग परिभोग विधि में ग्यारह वस्तुओं का परिमाण करते हैं। उसमें प्रथम आर्द्रनयनिका विधि में एक गंध काषायिक वस्त्र की मर्यादा कर शेष का त्याग करते हैं।
तयाणंतरं च णं दंतवणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगेणं अल्ललट्ठीमहएणं, अवसेसं दंतवणविहिं पच्चक्खामि ३'।
कठिन शब्दार्थ - दंतवणविहिपरिमाणं - दंत धावन-दतौन विधि का परिमाण, अल्ललट्ठी महुएणं- अल्ल-आर्द्र-गीली, लट्ठि-लकड़ी मधुकर-मुलेठी या जेठी। ___ भावार्थ - २. तत्पश्चात् दातुन विधि का परिमाण करते हैं - 'मैं हरी मुलेठी के सिवाय शेष सब प्रकार के दतौनों का त्याग करता हूँ।' ।
तयाणंतरं च णं फलविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगेणं खीरामलएणं, अवसेसं फलविहिं पच्चक्खामि ३'।
कठिन शब्दार्थ - फलविहि - फलविधि, खीरामलएणं - क्षीरामलक - दुधिया आंवला। ,
भावार्थ - ३. तदनन्तर फल विधि के परिमाण में क्षीर आमलक के सिवाय शेष सब फलविधि का आनंद प्रत्याख्यान करते हैं। - विवेचन - यहाँ फल विधि का प्रयोग खाने के फलों के संदर्भ में नहीं है। बाल, मस्तक
आदि धोने के लिए जिन फलों का उपयोग किया जाता है उनका यहाँ ग्रहण है। कम खटाई वाला दूध के समान मीठा आंवला क्षीरामलक कहलाता है। ऐसे आंवले की इस कार्य में विशेष उपादेयता होने से आनंद ने इसके अलावा बाकी सब फलविधि का त्याग कर दिया। ____ तयाणंतरं च णं अब्भंगणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहि, अवसेसं अब्भंगणविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं उव्वदृ(ण)णाविहिपरिमाणं करेइ, 'णण्णत्थ एगेणं सुरहिणा गंधट्टएणं, अवसेसं उव्वदृणाविहिं पच्चक्खामि ३'।
कठिन शब्दार्थ - अब्भंगणविहिपरिमाणं - अभ्यंगन विधि का परिमाण, सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं - शत पाक सहस्रपाक तैल, उवट्टणविहि - उद्वर्तन (उबटन) विधि, गंधट्टएणं - गंधाष्टक-आठ सुगंधित वस्तुओं का मिश्रण।
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