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________________ १६ श्री उपासकदशांग सूत्र ___ संसार से विमुख कर मोक्षाभिमुख करने वाले व्याख्यान ही 'धर्मकथा' है। धर्मकथा सुनने का सबसे बड़ा लाभ सर्वविरति अंगीकार करना है। श्रावक व्रत वही स्वीकार करता है जो संयम धारण न कर सके। जिसकी जिनवाणी पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं है, वह न तो संयमी जीवन के योग्य है और न श्रावक-व्रतों के। आनंद की प्रतिक्रिया तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ट जाव एवं वयासी - ‘सद्दहामि णं भंते! णिगंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते!, तहमेयं भंते!, अवितहमेयं भंते!, इच्छियमेयं भंते!, पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते!, से जहेयं तुब्भे वयह' तिकटु जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-सेट्टि(सेणावइ)सत्थवाहप्पभिइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, णो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे जाव पव्वइत्तए, अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। __कठिन शब्दार्थ - अंतिए - समीप, धम्म - धर्म को, सोच्चा - सुन कर, णिसम्म - हृदय में धारण करके, हट्टतुट्ठ - हृष्ट तुष्ट, सद्दहामि - श्रद्धा करता हूँ, णिग्गंथं पावयणं - निर्ग्रन्थ प्रवचन पर, पत्तियामि - प्रतीति करता हूँ, रोएमि - रुचि करता हूँ, एवमेयं - यह ऐसा ही है, तहमेयं - यह तथ्यपरक है, अवितहमेयं - यही अवितथ-सत्य-संदेह रहित है, इच्छियमेयं- यही इच्छित है, पडिच्छियमेयं - यही प्रतीच्छित-स्वीकृत है, इच्छियपडिच्छियमेयंयही इच्छित प्रतीच्छित है, तुब्भे - आपने, जहेयं - जैसा अर्थ, वयह - कहा, सत्थवाहप्पभिइओ - सार्थवाह प्रभृति-आदि, मुंडे भवित्ता - मुण्डित होकर, अगाराओ - आगार-घर बार से, अणगारियं - अनगार के रूप में, पव्वइया - प्रव्रजित, संचाएमि - समर्थ हूँ, पंचाणुव्वइयं - पांच अणुव्रतों, सत्तसिक्खावइयं - सात शिक्षा व्रतों, दुवालसविहं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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