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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - धर्मदेशना
१५ *-10--10-08-08-28-08-28-08-28-02-08-2-12-10-08-19-10-08-08-0-0-8--0-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-- नियम धारण करने को ही महान् हितकारी कल्याणकारी समझते थे और हृदय में वैसा अनुभव भी करते थे। आज भी ऐसी श्रद्धा, भावना और धर्मनिष्ठता अनुकरणीय है।
धर्मदेशना तए णं समणे भगवं महावीरे आणंदस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मकहा, परिसा पडिगया, राया य गए।
कठिन शब्दार्थ - महइ महालियाए - विशाल जन सभा को, धम्मकहा - धर्मकथा, परिसा पडिगया - परिषद् लौटी, राया य - राजा भी, गए - गये।
भावार्थ - तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आनंदगाथापति तथा विशाल परिषद् को धर्मकथा कही। परिषद् और राजा धर्म सुन कर चले गए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तीर्थंकर भगवान् की धर्मदेशना का वर्णन है। भगवान् के धर्मोपदेश का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र में है। यहाँ उसका संक्षिप्त पाठ ग्रहण किया गया है। उस उपदेश का संक्षिप्त विषय निर्देश इस प्रकार है -
१. लोक, अलोक, जीव, अजीव आदि नरकादि, माता-पिता, ऋषि-मुनि, सिद्ध-सिद्धि आदि तत्त्वों का अस्तित्त्व है।
२. अठारह पाप, पापों का त्याग, पुण्य और पाप कर्मों का फल आदि है। ____३: केवली प्ररूपित उत्कृष्ट धर्म का आचरण, आराधन कर जीव सिद्ध होता है, यदि कर्म शेष रहे तो देव बनता है और उसके बाद के भवों में मुक्त होता है।
४. नरकादि चार गतियों में जाने अर्थात् उनके आयुष्य बंध के चार-चार कारण हैं। ५. दो प्रकार के धर्म (अगार धर्म और अनगार धर्म) की आराधना बंधन-मुक्ति का मार्ग है। ६. अनगार धर्म में पांच महाव्रतों और रात्रि भोजन विरमण व्रत का पालन हो।
७. अगार धर्म में श्रावक के बारहव्रतों का स्पष्टीकरण है। अगार धर्म में स्थित श्रावक भी आज्ञा का आराधक होता है।
८. दोनों धर्मों में पंडित मरण संलेखना संथारा का भी कथन है। ___ इस प्रकार का धर्मोपदेश सुन कर कितनेक जीव अनगार बनते हैं, कितनेक श्रावक के व्रत स्वीकार करते हैं और कितनेक सम्यग्-दर्शन को प्राप्त करते हैं।
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