SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ श्री उपासकदशांग सूत्र 00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-0-0-10-10 तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी णिहाणपउत्ता, एक्का वुड्डिपउत्ता, एक्का पवित्थरपउत्ता, एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं। तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता णामं भारिया होत्था। भावार्थ - उस सकडालपुत्र आजीविकोपासक के पास एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं निधान में थीं, एक करोड़ व्यापार में तथा एक करोड़ की घर बिखरी थी। दस हजार गायों का एक वज्र था। उसकी पत्नी का नाम अग्निमित्रा था। ___ तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स णयरस्स बहिया पंच कुम्भकारावणसया होत्था। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्धघडए य कलसए य अलिंजरए य जम्बूलए य उट्टियाओ य करेंति। अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं तेहिं बहूहिं करएहि य जाव उट्टियाहि य रायमगंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। कठिन शब्दार्थ - बहिया - बाहर, पंचकुंभकारावणसया - पांच सौ कुम्हार की कर्मशालाएं, दिण्णभइभत्तवेयणा - भोजन तथा मजदूरी रूप वेतन पर काम करने वाले, कल्लाकल्लिं - प्रतिदिन प्रभात होते ही, करए - करक-करवे, वारए - वारक-गडुए, पिहडएपिठर-आटा गूंधने या दही जमाने के काम में आने वाली परातें या कुंडे, घडए - घटक-तालाब आदि से पानी लाने के काम में आने वाले घड़े, अद्धघडए - अधघड़े-छोटे घड़े, कलसए - कलशक-कलशे, अलिंजरए - अलिंजर-पानी रखने के बड़े घड़े, जंबूलए - जंबूलक-सुराहियाँ, उहियाओ - उष्ट्रिका-तैल, घी आदि रखने में प्रयुक्त लम्बी गर्दन और बड़े पेट वाले बर्तनकूपे, रायमग्गेहि - राजमार्ग पर। भावार्थ - पोलासपुर नगर के बाहर उस सकडालपुत्र आजीविकोपासक के पांच सौ कर्मशालाएं-मिट्टी के बरतन बनाने की दुकानें थीं। वहां भोजन तथा मजदूरी रूप वेतन पर काम करने वाले बहुत से पुरुष प्रतिदिन प्रभात होते ही करवे, गडुए, परातें या कुंडे, घड़े, छोटे घड़े, कलसे, बड़े मटके, सुराहियाँ तथा कूपे बनाने में लग जाते थे। अन्य बहुत से नौकर थे जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy