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________________ सातवां अध्ययन - श्रमणोपासक सकडालपुत्र - सकडालपुत्र को देव संदेश १२६ प्रतिदिन उन बरतनों को राजमार्ग पर बेचा करते थे। इस प्रकार वह कुंभकार अपना व्यवसाय चलाता था। सकडालपुत्र को देव संदेश (४५) तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अण्णया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरइ। तए णं तस्स सहालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं जाव परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी - ___ कठिन शब्दार्थ - अंतलिक्खपडिवण्णे - आकाश में अवस्थित, संखिंखिणियाई - छोटी छोटी घंटियों (घुघुरुओं) से युक्त, परिहिए - पहने हुए। भावार्थ - एक दिन सकडालपुत्र आजीविकोपासक मध्याह्न (दोपहर) के समय अशोकवाटिका में जा कर मंखलिपुत्र गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति का चिंतन करने लगा। तब उसके समक्ष एक देव प्रकट हुआ। घुघुरुओं सहित श्रेष्ठवस्त्रों को धारण करने वाला आकाश में स्थित उस देव ने आजीविकोपासक सकडाल पुत्र से इस प्रकार कहा - . एहिइ णं देवाणुप्पिया! कल्लं इहं महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयपडुप्पण्णमणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कवहियमहियपूइए सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स अच्चणिज्जे (पूयणिजे) वंदणिजे सक्कारणिजे सम्माणणिजे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं जाव पजुवासणिजे तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते, तं णं तुमं वंदेजाहि जाव पजुवासेजाहि, पाडिहारिएणं पीढफलंगसिजासंथारएणं उवणिमंतेजाहि, दोच्चंपि तच्वंपि एवं वयइ वइत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। कठिन शब्दार्थ - कल्लं - कल प्रातःकाल, महामाहणे - महामाहन्, उप्पण्णणाण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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