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________________ तीसरा अध्ययन - श्रमणोपासक चुलनीपिता - प्रतिमा आराधन १०६ **-*-*-*-*-*-*-10-08-12-2-*-*-18-18-18-10-09-19-**-*-*-12-08-10-22-28-48-48--8-28-*-*-*-*-*-*-*-49-60तुम भग्नव्रत हुए हो। स्थूल प्राणातिपात विरमण को तुमने भाव से भंग किया है। भयंकर स्वरूप को क्रोधपूर्वक मारने दौड़े, जिससे व्रत का भंग हुआ, क्योंकि अपराधी को भी मारना व्रत का विषय नहीं है। इसलिए 'भग्ननियम' क्रोध के उदय से उत्तरगुण का भंग हुआ एवं 'भग्नपौषध'अव्यापार पौषध व्रत का भी भंग हुआ, इसलिए उसकी आलोचना करो और गुरु के आगे पापों को निवेदन करके उसका प्रायश्चित्त करो, आत्मसाक्षी से उस पाप की निंदा करो, अतिचार रूप मल को साफ कर के व्रत को शुद्ध करो, फिर दोष न लगे, ऐसी सावधानी रखो। यथार्थ तपकर्म रूप प्रायश्चित्त लो। साधु के समान गृहस्थ भी यथायोग्य प्रायश्चित्त का पात्र है। यह बात इस सूत्र-पाठ से स्पष्ट हो जाती है। उपरोक्त खुलासा श्रीमद् अभयदेव सूरि ने टीका में किया है। तए णं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मगाए भद्दाए सत्थवाहीए तहत्ति एयमलैं विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवजइ । भावार्थ - तदनन्तर चुलनीपिता श्रमणोपासक ने अपनी पूज्या मातुश्री के वचनों को 'आप' ठीक कहती हैं' यों कह कर विनयपूर्वक सुना और सुन कर उस स्थान की आलोचना की यावत् तप कर्म रूप प्रायश्चित्त स्वीकार किया। । प्रतिमा आराधन (३०) -तए णं से चुलणीपिया समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरइ, पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं जहा आणंदो जाव एक्कारसवि। - भावार्थ - कालान्तर में चुलनीपिता श्रमणोपासक ने प्रथम उपासक प्रतिमा अंगीकार की यावत् आनंदजी की भांति ग्यारह ही प्रतिमाओं का घोर तप सहित शुद्ध आराधन किया। भविष्य कथन तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं उरालेणं जहा कामदेवो जाव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थिमेणं अरुणप्पभे विमाणे देवत्ताए उववण्णे। चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ५॥ णिक्खेवो॥ ॥ तइयं अज्झयणं समत्तं॥ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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