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श्री उपासकदशांग सूत्र
मम अग्गओ घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिण्हित्तए त्तिकटु उद्धाइए, सेऽवि य आगासे उप्पइए, मएऽवि य खम्भे आसाइए, महया महया सद्देणं कोलाहले कए।
भावार्थ - उस पुरुष से दूसरी बार, तीसरी बार मुझे पुनः कहा - हे चुलनीपिता श्रमणोपासक! आज तुम अकाल में मारे जाओगे।
उस पुरुष द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर मेरे मन में ऐसा विचार आया - "अरे! यह पुरुष नीच यावत् पाप कर्म करने वाला है इसने मेरे बड़े पुत्र, मंझले पुत्र और छोटे पुत्र को घर से लाकर मार दिया और अब तुमको भी घर से ला कर मेरे सामने मार डालना चाहता है इसलिये श्रेष्ठ यही है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूं। इस प्रकार सोच कर ज्योंही मैं उसे पकड़ने के लिये उठा त्योंही वह आकाश में उड़ गया। उसे पकड़ने के लिये फैलाये गये मेरे हाथों में यह खम्भा आ गया। इसलिये मैंने यह कोलाहल किया है।"
व्रत भंग हुआ प्रायश्चित्त लो
(२६)
तए णं सा भद्दा सत्थवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - णो खलु केइ पुरिसे तव जाव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ णीणेइ, णीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिठे, तं णं तुमं इयाणिं भग्गव्वए भग्गणियमे भग्गपोसहे विहरसि, तं णं तुम पुत्ता! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवजाहि।
कठिन शब्दार्थ - विदरिसणे - भयंकर दृश्य, दिट्टे - देखा, भग्गव्वए - भग्न व्रत, भग्गणियमे - भग्न नियम, भग्गपोसहे - भग्न पौषध, आलोएहि - आलोचना करो, पडिवजाहि - स्वीकार करो। ___भावार्थ - तब भद्रा सार्थवाही ने चुलनीपिता श्रमणोपासक से इस प्रकार कहा - हे पुत्र! ऐसा कोई पुरुष नहीं था यावत् तुम्हारे छोटे पुत्र को घर से लाकर मारा है। यह तो तुम्हारे लिए कोई उपसर्ग था। इसलिए तुमने यह भयंकर दृश्य देखा है और तुम्हारा व्रत, नियम तथा पौषध भग्न हुआ हैखंडित हुआ है। इसलिए हे पुत्र! इस दोष स्थान की आलोचना कर तप-प्रायश्चित्त स्वीकार करो।
विवेचन - चुलनीपिता से उसकी माता ने कहा कि तुमने भयंकर स्वरूप देखा है, जिससे
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