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तीसरा अध्ययन - श्रमणोपासक चुलनीपिता - चुलनीपिता का समाधान १०७
था वहां आई और आकर चुलनीपिता से बोली- हे पुत्र! तुम इस प्रकार जोर-जोर से शोर क्यों कर रहे हो ?
चुलनीपिता का समाधान
तणं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मयं भद्दं सत्थवाहिं एवं वयासी एवं खलु अम्मो ! ण जाणामि, केवि पुरिसे आसुरत्ते ५ एगं महं णीलुप्पल - जाव असिं गहाय ममं एवं वयासी हं भो चुलणीपिया ! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया ४ जड़ णं तुमं जाव ववरोविजसि ।
भावार्थ तब चुलनीपिता श्रमणोपासक ने अपनी माता भद्रा सार्थवाही से इस प्रकार
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कहा " हे माता! न जाने कौन व्यक्ति नीलकमल के समान प्रभा वाला खंड्ग ले कर मेरे पास आया और कुपित होकर कहने लगा कि ' हे चुलनीपिता! यदि तुम व्रत भंग नहीं कोरगे तो यावत् अकाल में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे । '
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(तए णं) अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ने समाणे अभीए जाव विहरामि ।
भावार्थ - उस पुरुष द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भी मैं निर्भयता पूर्वक धर्मध्यान में लीन रहा । तणं से पुरिसे ममं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता ममं दोच्चंपि तच्चपि एवं वयासी हं भो चुलणीपिया! समणोवासया! तहेव जाय गायं आयंचड़। तए णं अहं तं उज्जलं जाव अहियासेमि । एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जांव आयंचड़, अहं तं उज्जलं जाव अहियासेमि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ममं चउत्थंपि एवं वयासी हं भो चुलणीपिया! समणोत्रासया ! अपत्थियपत्थिया जाव ण भंजसि तो ते अज्ज जा इमा माया देवयगुरु जाव ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभी जाव विहरामि । तए णं से पुरिसे दोच्चंपि तच्वंपि ममं एवं वयासीहं भो चुलणीपिया ! समणोवासया ! अज्ज जाव ववरोविज्जसि । तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्वंपि तच्वंपि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए ५ अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जाव समायरइ, जेणं ममं जेट्टं पुत्तं साओ गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव आयंचइ, तुब्भेऽवि य णं इच्छइ साओ गिहाओ णीणेत्ता
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