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________________ १०६ *--*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* श्री उपासकदशांग सूत्र कठिन शब्दार्थ - अणारिए - अनार्य, अणारियबुद्धी - अनार्य बुद्धि वाला, समायरइआचरण करता है। भावार्थ - जब उस देव ने दूसरी तीसरी बार इस प्रकार कहा तब चुलनीपिता श्रमणोपासक के मन में विचार आया कि - अहो! यह पुरुष निश्चय ही अनार्य, अनार्य बुद्धि वाला, नीचतापूर्ण पाप कार्य करने वाला है। जिसने मेरे ज्येष्ठ पुत्र को घर से लाकर मेरे आगे मार डाला और उसके रक्तमांस को मेरे शरीर पर 'छींटा। इसी प्रकार जो मेरे मध्यम (मंझले) पुत्र और छोटे पुत्र को घर से लाया और मार डाला। अब यह देव और गुरु सदृश पूजनीय, अत्यंत दुष्कर कार्य करने वाली मेरी माता भद्रा सार्थवाही को भी घर से लाकर मेरे सामने मारना चाहता है। इसलिये यही श्रेष्ठ है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूं। चुलनीपिता देव पर झपटता है त्तिकदै उट्ठा(द्धा)इए, सेऽवि य आगासे उप्पइए, तेणं च खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए। कठिन शब्दार्थ - उद्धाइए - उद्यत हुए, आगासे - आकाश में, उप्पइए - उड़ा, आसाइए - हाथ में आया, खंभे - खम्भा, कोलाहले - कोलाहल, सद्देणं - शब्दों से। भावार्थ - ऐसा विचार कर चुलनीपिता श्रमणोपासक उस देव को पकड़ने के लिए दौड़ा तो वह देव आकाश में उड़ गया और उसके हाथों में खम्भा आ गया। वह जोर जोर से कोलाहल (शोर) करने लगा। विवेचन - कामदेव अध्ययन में देव ने पिशाच रूप बनाया था, यहाँ सम्भवतः पुरुष का रूप बना कर उपरोक्त उपसर्ग किए, इसी कारण चुलनीपिता ने उसे देवकृत उपसर्ग न समझ कर पुरुषकृत माना। पुरुष वैसा कर भी सकता था, इसी कारण वे पकड़ने को उद्यत हुए। यदि उन्हें देव का ज्ञान होता, तो वे अब भी पूर्ववत् दृढ़ रहते, ऐसा अनुमान होता है। माता की जिज्ञासा तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं कोलाहलसहं सोच्चा णिसम्म जेणेव चुलणीपिया समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - किण्णं पुत्ता! तुमं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए? भावार्थ - भद्रा सार्थवाही ने जब कोलाहल सुना तो वह जहां चुलनीपिता श्रमणोपासक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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