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तिर्यंच योनि के दुःख MARRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR***************************
खेतों और बगीचों में जाकर फसल को हानि पहुंचाने वाली अथवा भाग कर पूर्व स्थान पर चली जाने वाली गाय के गले में गलदंड (डिंगरा),भी बांधा जाता है, जिससे वह भाग नहीं सकती।
पंकजलणिमजणाणि - कीचड़ युक्त पानी में चलाये जाने या दलदल में फँस जाने से भी महान् दुःख होता है। भैंस आदि पशु, गर्मी से घबराये हुए ठण्डक पाने के लिए ऐसे पानी में जाकर गिरें । कि जिसमें कीचड़ अधिक हो। उनका सारा शरीर कीचड़ से लथपथ हो जाता है, फिर वह कीचड़ सूख जाने पर चमड़ी को सिकोड़ता है और नया दुःख उत्पन्न कर देता है। कमजोर एवं वृद्ध भैंस आदि ऐसे स्थान पर कीचड़ में फंस जाती हैं और उसी में तड़प-तड़प कर मर जाती है।
बैलों को गाड़ी, रथ आदि में जोतकर तथा घोड़ों और गंधों को कीचड़ में भार खींचते हुए चलाया जाता है, जिससे पशुओं को भारी दुःख होता है। उनकी हड्डियाँ खींच जाती हैं, आँखें बाहर निकल जाती हैं, श्वास उखड़ जाता है और जीवन दुःख में घुलकर समाप्त हो जाता है। जब सर्दी जोरदार पड़ रही हो, हिम-वर्षा हो रही हो और मनुष्य घर में भी गर्म कपड़े पहनकर और कम्बलरजाई आदि ओढ़कर सिगड़ी के ताप में रहता हो, उस समय पशुओं को खुले में रखना या उन्हें चलाना
और बर्फ के समान ठण्डे पानी में होकर वाहन खींचने के लिए विवश करना, कितना दुःखदायक होता होगा? ऐसी भीषण सर्दीयुक्त वर्षा में बिचारे वनचर पशुओं की क्या दशा होती होगी?
. जब विशाल वन में अग्नि लग गई हो या किसी ने लगा दी हो और उस महाग्नि की चपेट में कोसों दूर तक का वन आ गया हो, आक की ज्वालाएं आकाश छू रही हों, धूएँ के बादल छा कर जीवों का श्वास रुंध रहा हो, ऐसे भीषणतप उपद्रव में चींटी से लगाकर सिंह और हाथी तक के प्राणों पर संकट आ जाता है। सांप, बिच्छु इत्यादि हजारों प्रकार के पशु-पक्षियों, बच्चों और अंडों का सामूहिक श्मशान बन जाता है। तिर्यंच योनि में ऐसे अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं।
एवं ते दुक्ख-संय-संपलित्ता णरगाओ आगया इहं सावसेसकम्मा तिरिक्खपंचंदिएसु पाविति पावकारी कम्माणि पमाय-राग-दोस-बहु-संचियाई अईव अस्साय
कक्साई। . शब्दार्थ - एवं - इस प्रकार, ते - वे, णरगाओ आगया - नरक से आये हुए जीव, तिरिक्ख
पंचदिएस- तिर्यंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होकर, दुक्खसयसंपलित्ता - सैकड़ों प्रकार के दुःखों से संतप्त रहते हैं और, इहं - यहाँ, सावसेसकम्मा - अपने बचे हुए कर्मों का फल भोगते हैं, पावकारी कम्माणिवे पापकारी कर्म करने वाले प्राणी, पमाय-रागदोस बहुसंचियाई - प्रमाद राग और द्वेष से बहुत-सेकर्मों का संचय करके, अईव - अत्यन्त, अस्सायकक्कसाई - दारुण दुःख एवं कठोर कष्टों को पाविति - प्राप्त करते हैं।
. भावार्थ - इस प्रकार नरक से निकलकर तिर्यंच में आये हुए वे जीव, सैकड़ों प्रकार के दुःखों से संतप्त रहते हैं और बचे हुए पाप-कर्मों को भोगते रहते हैं। वे पाप करने वाले जीव अपने प्रमाद, राग
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