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________________ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०१ **** *************** *********** ************ पेट में वायु भरकर, दोहणाणि - दूध दुहकर, कुदंडगलबंधणाणि - गले में दंड (डिंगरा) बांधकर, वाडगपरिवारणाणि - बाड़े में घेरकर, पंकजलणिमजणाणि - कीचड़ युक्व जल में प्रवेश कराकर, वारिप्पवेसणाणि - जल में प्रवेश करवा कर, ओवायणिभंग - अंग-भंग होकर, विसमाणिवडण - विषम स्थान से गिराकर, दवग्गिजालदहणाई - वन में दावाग्नि की ज्वाला से जल कर। .. भावार्थ - तिर्यंचों को माता-पिता का वियोग जन्य दुःख सहन करना पड़ता है। वे शोक से पीड़ित रहते हैं। उन्हें शस्त्र, अग्नि और विष के असह्य आघात सहन करने पड़ते हैं। उनकी गर्दन मरोड़ दी जाती है। सींग मोड़कर मृत्यु जैसा दुःख दिया जाता है। मछलियों के गले में कांटा . फंसाकर और जाल में फंसाकर पकड़ा व मारा जाता है। लोग उन जीवों को पकाते और काटते हुए घोरतम दुःख देते हैं। उन्हें स्वजातीय झुंड से पृथक् कर और पिंजरे में बन्द करके जीवनभर के लिए बन्दी बना देते हैं। गाय आदि के गले में डिंगरा बांध कर उसका चलना कठिन कर देते हैं। उनके पेट में वायु भरकर दुःखी किये जाते हैं। बाड़े में घेर दिये जाते हैं। कीचड़ भरे हुए पानी में उतार दिये जाते हैं। बरबस पानी में उतारे जाते हैं। विषम स्थान से गिराकर अंगभंग कर दिया जाता है। वे तिर्यंच, वन के दावानल में जलकर दुःखी होते हैं। विवेचन - तिर्यंच जीवों के विविध प्रकार के दुःखों का वर्णन करते हुए सूत्रकार ने बहुत-से दुःख तो मनुष्य-कृत बताये हैं। इन दुःखों का सम्बन्ध मुख्यतः संज्ञी तिर्यंचों से है। . वन-विहार पशुओं के सिंहादि से भयभीत होकर इधर-उधर भागने से भी (भटक जाने से) माता-पिता का विरह हो जाता है। किन्तु मनुष्य तो अपने स्वार्थ की खातिर बछड़ों को गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी आदि से पृथक् करके दुःखी करते हैं। मांसाहारी लोग, इन्हें मार खाते हैं और बछड़े . मातृ-वियोग में तड़पते रहते हैं। कोई मातां से बछड़ों को छिनकर मार डालते हैं, कोई स्वयं बलि दे. . देते हैं, तो कोई पैसे के लालच में भैंसे और बकरी के बच्चे को बलिदान के लिए बेच देते हैं। इस प्रकार इन प्राणियों को माता-पिता और बछड़े तथा समूह का विरह दुःख सहना पड़ता है। वे वियोग के शोक में पीड़ित होकर रुदन करते रहते हैं। बैल आदि पर क्रुद्ध होकर, नाथ की रस्सी खींचकर गर्दन मोड़ने और इस प्रकार बांध कर दंड देने की निर्दयता की जाती है। सींगों को सुन्दर बनाने के लिए मोड़ा जाता है। अधिक लम्बे, तीखे और सहज ही किसी के लगने या झाड़ी में अटकने वाले सींगों को काट दिया जाता है, जिससे पशु को लम्बे समय तक वेदना होती रहती है। कभी सींगों में कीड़ा लगकर पशु की मृत्यु का कारण भी बन जाता है। मनुष्य अपने विनोद के लिए तोता, मैना, हिरण, बन्दर, खरगोश आदि को बन्दी बना लेता है। उसका वह बन्दीपन जीवनपर्यन्त चलता है। गाय, भैंस, घोड़ा आदि जितने पालतु पशु हैं वे सब सदैव के लिए बन्दी बने रहते हैं। चिड़ियाघर (अजायबघर) में अनेक प्रकार के पक्षी और सिंह, व्याघ्र, चीता, भालू, रोज तथा सर्प आदि उरपरिसर्प भी बन्दी बनाकर रखे जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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