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________________ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०१ ************************************************* ********** . भावार्थ - मुद्गर से मार-कूट कर नारक जीवों का शरीर चूर-चूर कर दिया जाता है, मुसुंढी से . टुकड़े कर दिये जाते हैं, शरीर को मथ दिया जाता है, यंत्र में पैर कर छूदा जाता है और वे छिन्न टुकड़े . तड़पते रहते हैं। चमड़ी उधेड़ दी जाती है। उनके कान, नाक और ओंठ काटकर निर्मूल कर दिये जाते हैं। उनके हाथ और पांव काटकर फेंक दिये जाते हैं। किसी के तलवार के वार से टुकड़े किये जाते हैं, तो किसी के आरे से चीर कर और किसी के कुल्हाड़ी से फाड़कर टुकड़े किये जाते हैं। भाले से भेद्रन और वसूले से छिलकर अंगोपांग के छिलके उतारे जाते हैं। उबल कर कलकल शब्द करते हुए शरीर युक्त गर्म पानी का देह पर सिंचन करके उन्हें जलाया जाता है। भाले से भेद-भेदकर उनके सारे शरीर को जर्जरित किया जाता है। मारपीट से हुए सुजन एवं फफोलों से उनका शरीर फूल कर मोटा-हो जाता .. है। इस प्रकार के घोरातिघोर दुःख से पीड़ित होकर वे नारक जीव, पृथ्वी पर लोटते-तड़पते रहते हैं। ' विवेचन - पूर्व सूत्र में शस्त्रों का वर्णन आया है। उन शस्त्रों से नारक जीव को किस प्रकार की भयंकरतम एवं घोरातिघोर वेदना सहन करनी पड़ती है, वह इस सूत्र में बताई गई है। यह वेदना नरकपालों के द्वारा भी होती है और पारस्परिक संघर्ष से भी। तत्थ य विग-सुणग-सियाल-काक-मजार-सरभ-दीविय-वियग्घग-सहुलसीहदप्पिय-खुहाभिभूएहिं णिच्चकालमणसिएहिं घोरा रसमाण-भीमरूवेहिं अक्कमित्ता दंढदाढागाढ-डक्क-कड्डिय-सुतिक्ख-णह-फालिय-उद्धदेहा विच्छिप्यंते समंतओ विमुक्कसंधिबंधणा वियंगिरंगमंगा कंक-कुरर-गिद्ध-घोर-कट्ठवायसगणेहि य पुणो खरथिरदढणक्ख-लोहतुंडेहिं उवइत्ता पक्खा हय-तिक्ख-णक्ख विक्किण्ण जिब्भंछिय-णयणणिइओलुग्गविगय-वयणा उक्कोसंता य उप्पयंता णिप्पयंता भमंता। शब्दार्थ - तत्थ - वहाँ, विग - भेड़िया, सुणग - कुत्ता, सियाल - गीदड़, काक - कौआ, मज्जार - बिल्ला, सरभ - अष्टापद, दीविय - चीता, वियग्धग - व्याघ्र, सहुलसीह - शार्दूलसिंह, दप्पिय खुहाभिभूएहिं - ये सभी जानवर दर्पयुक्त तथा भूख से पीड़ित, णिच्यकालं - सदाकाल, अणसिएहिं-- भूखे रहते हैं, घोरा - वे बड़े घोर-भयावने, रसमाण भीमलवेहिं - गर्जनादि शब्द करते हुए भयंकर रूप वाले, अक्कमित्ता - आक्रमण करके, दढदाढागाढडक्ककडियसुतिक्खणहफालियउद्धदेहा - अपनी दृढ़तम दाढ़ाओं से पकड़ कर खिंचते हुए अपने तीखे नखों से नारक जीवों के शरीर को चीरते हैं, विमुक्कसंधि-बंधणा वियंगियंगमंगा - इनके द्वारा नारकों के शरीर की सन्धियाँ ढीली और अंग विकल कर दिये हैं, समंतओ - चारों ओर से, विच्छिप्पंते - फैंक दिये जाते हैं, पुणो - फिर, कंक-कुररगिद्ध - इन प्रसिद्ध नाम वाले पक्षी, घोरकट्ठवायसगणेहि - घोर कष्ट देने वाले कौओं का झुंड, खरथिरदढणक्खलोहतुंडेहिं - कठोर, दृढ़ एवं स्थिर नाखुन तथा लोह जैसी चोंच है जिनकी ऐसे पक्षियों का समूह, उवइत्ता - उन तड़पते हुए नारकों पर टूट पड़ता है, पक्खाहय - पंखों से आहत करते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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