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________________ प्रश्नव्याकरणसूत्रं श्रु० १ अ० १ ******************* है। ऐसे लोग कहते हैं कि 'पशुवध आवश्यक है। मांस में अन्न, दूध तथा घृतादि की अपेक्षा अधिक शक्ति है। मांस, मत्स्य एवं अंडा भक्षण से शरीर बलवान् बनता है। दुधारु और खेती के काम में आने वाले पशुओं के अतिरिक्त सभी पशुओं को और सभी पक्षियों तथा जलचरों को मारना उपादेय ही नहीं लाभकारी भी है। इससे बेकार पशुओं पर होता हुआ खर्च रुकता है, अन्न की कमी की पूर्ति होती है और धन लाभ भी होता है । ' २६ बन्दर, मेढ़क आदि को पकड़कर विदेश भेजकर धन प्राप्त किया जाता है। इन्हें पकड़ कर लाने, इकट्ठा करके विदेश भेजने का काम बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा सरकार करवाती है। वे इन सब पापकार्यों की उपादेयता बतलाते हुए कहते हैं कि - "ये पशु राष्ट्र के किसी काम में नहीं आते। बन्दर, हिरन, नीलगाय आदि खेती को हानि पहुँचाते हैं । अतएव इनकी हिंसा उपादेय - हितकारी है।" इस प्रकार पाप की उपादेयता बताकर हिंसा को बढ़ावा देते हैं। पावरुई - "पापपरुचयः पापे एव रुचिरनुरागः "" - जिसकी पाप में रुचि अनुराग हो। बहुत से लोगों का तो जीवहत्या करने का शौक होता है। शिकार खेलना प्रायः शौक - रुचि के कारण होता है। . यह एक प्रकार का व्यसन हो जाता है। शिकारी की रुचि किसी-किसी की इतनी तीव्र हो जाती है कि वह अपने आपको खतरे में भी डाल देता है। कई जिह्वा-लोलुप धनहीन मांसाहारी लोग, स्वाद रुचि के लिए छोटे-छोटे पशुओं और पक्षियों को मारकर उदरस्थ करते हैं। कोई-कोई तो केवल मनोरंजन के लिए कुत्तों से पशुओं की घात करवाते हैं। पिंजरे में कई दिन तक चीते को भूखा रखकर और उसे दाँत तथा नाखून से रहित करके मैदान में छोड़ने और फिर भयंकर शिकारी कुत्तों को छोड़कर उसे मरवाने के मनोरंजन भी मनुष्य करता है। सबल को निर्बल बनाकर निर्बल के हाथों मरवाकर तमाशा देखने और प्रसन्न होने की मनोवृत्ति भी मनुष्य में है । विजया के त्योहार पर भैंसे को मदिरा पिलाकर मैदान में छोड़ना और उसे मानव-समूह द्वारा भालों और बरछों से मारने का कार्य भी बढ़ा क्रूर है। वह भैंसा अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भागता है, किन्तु चारों ओर घेरा डाले हुए मनुष्य उसे अपने पास आते ही तीक्ष्ण भाले से मारते हैं । वह भयभीत भैंसा उधर से लौटकर दूसरी ओर भागता है, किन्तु वहाँ भी उसका रक्षक कौन है ? सभी भाले और बरछे लिए हुए उसे मारने को तत्पर । यदि किसी दर्शक के मन में करुणा जगे, तो भी वह क्या कर सकता है? सैकड़ों या हजारों दर्शकों के मनोरंजन में बाधक बनने का वह साहस नहीं कर सकता। इस प्रकार लगभग आधे घंटे में वह भैंसा गिर जाता है। उस गिरे हुए परं भी प्रहार होता है और वह तड़पतड़प कर मर जाता है। इस प्रकार के मनोरंजन रजवाड़ों और ठिकानों में होते थे। अब भी कदाचित् कहीं होते हों ? "पावमई" 'पापमतयः पापमेव श्रद्धानः " अथवा "पापमयबुद्धयः " जिसकी श्रद्धा ही पापमय हो। जो जीवहत्या में अपना, परिवार यावत् राष्ट्र का हित मानता हो, जिसकी श्रद्धा हो कि पशुओं का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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