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________________ 332 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०५ *************************************************** पांव, एड़ी और घुटना पर पत्थर मारना, पीलण - कोल्हू में डाल कर पीड़न करना, कविकच्छु - तीव्र खाज उत्पन्न करने वाले फल विशेष द्वारा ताड़ना, अगणि - अग्नि में तपाना, विच्छुयडक्क - बिच्छू का डंक मारना, वायातवदंसमसगणिवाय - वायु, धूप, डांस और मच्छर आदि से होने वाला कष्ट, दुइणिसज्जसीहिय - कष्टदायक शय्या और आसन, दुब्भिकक्खड - अत्यन्त कर्कश, गुरु - भारी, सीयशीत, उसिण - उष्ण, लुक्खेसु - रूक्ष, बहुविहेसु - विविध प्रकार के, अण्णेसु - दूसरे, य - और, एवमाइएसु - इसी प्रकार के, फासेसु - स्पर्श करके, अमणुण्णपावगेसु - अमनोज्ञ और बुरे, तेसुउनमें, समणेण - साधु को, ण रूसियव्वं - द्वेष नहीं करना चाहिए, णं हीलियव्वं - हीलना नहीं करनी . चाहिए, ण णिंदियव्वं- निन्दा नहीं करनी चाहिए, ण गरहियव्वं- गर्दा नहीं करनी चाहिए, ण खिंसियव्वंखिंसना नहीं चाहिए, ण छिंदियव्वं - छेदन नहीं करना चाहिए, ण भिंदियव्वं - भेदन नहीं करना; ण वहेयव्वं - वध नहीं करना, य - और, ण दुगुच्छावत्तियं उप्पाएउंण लब्भा - उनमें घृणा भी उत्पन्न नहीं करनी चाहिए, एवं - इस प्रकार, फासिंदिय भावणा भाविओ - स्पर्शनेन्द्रिय की भावना से भावित, अंतरप्पा - अन्तरात्मा, भवई - होता है, मणुण्णामणुण्ण-सुब्भि-दुब्भिरागदोसपणिहियप्पा - मनोज्ञ, अमनोज्ञ, सुगन्धित और दुर्गन्धित पदार्थों में अपनी आत्मा को राग-द्वेष रहित रखता हुआ, मणवयणकायगुत्ते - मन, वचन और काया से गुप्त, संवुडे - संवरधारी, पणिहिइंदिए - जितेन्द्रिय, साहू - साधु, चरिज धम्म- धर्म का आचरण करे। भावार्थ - मनोज्ञ स्पर्श की रुचि, आसक्ति एवं लुब्धता का निषेध करने के बाद अमनोज्ञ स्पर्श के प्रति द्वेष का निषेध किया जा रहा है। साधु, स्पर्शनेन्द्रिय से अमनोरम स्पर्श करके उन पर क्रोध या द्वेष नहीं करे। वे अमनोज्ञ स्पर्श कौन से हैं? उत्तर - विविध प्रकार से कोई वध करे, रस्सी आदि से बांधे, थप्पड़ आदि मारकर ताड़ना करे, अंकन-उष्ण लोह-शलाका से दाग-कर अंग पर चिह्न बनावे, शक्ति से अधिक भार लादे, अंगों को तोड़े-मरोड़े, नखों में सूई चुभावे, शरीर को छिले, उबलता हुआ लाख का रस, क्षारयुक्त तेल, रांगा, शीशा और तप्त लोह-रस से अंग सिंचन करे (शरीर पर ऊँडेले) हड्डिबन्धन (खोड़े में पाव फँसाकर बन्दी बनावे) रस्सी या बेड़ी से बांधे, हाथों में हथकड़ी डाले, कुंभी में पकाया जाय, अग्नि में जलावे, सिंहपुच्छन (शिश्न भंग करे या अण्डकोश निकालकर नपुंसक करे) उद्बन्धन-वृक्ष आदि पर बांध कर लटकावे, शूल भोंके या शूली पर चढ़ावे, हाथी के पैरों में डाल कर कुचले, हाथ, पाँव, कान, ओष्ठ, नासिका और मस्तक का छेदन करे। जीभ उखाड़ले, अण्डकोश, नेत्र, हृदय और दाँतों को उखाड़ दे, चाबुक, बेंत या लता से प्रहार करे, पांव, ऐड़ी, घुटना और जानु आदि पर पत्थर से प्रहार करे, कोल्हू आदि में डाल कर पीले, करेंच फल के बुरे या अन्य साधन से तीव्र रूप से खुजली उत्पन्न करे, आग में तपावे या जलावे, बिच्छू से डंक लगवावे, वायु धूप, डांस-मच्छर आदि से होने वाले कष्ट, ऊबड़ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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