________________ पंचम भावना-स्पर्शनेन्द्रिय-संयम 331 **************************************************************** मालिश, टूथपेस्ट सेवन, स्नान, अकारण वस्त्र-धोवन आदि प्रवृत्ति भी इस महाव्रत और इस भावना का उल्लंघन करके ही की जाती है। आत्मार्थियों को इससे बचना चाहिए। पुणरवि फासिदिएण फासिय फासियाइं अमणुण्णपावगाइं। किं ते? अणेगवह-बंध-तालणंकण-अइभारारोवणए अंगभंजण-सूईणखप्पवेस-गायपच्छणणलक्खारसखारतेल्ल कलकलंत-तउय-सीसग-काललोह-सिंचण-हडिबंधणरज्जुणिगल संकल-हत्थंडुय-कुंभिपागदहण-सीहपुच्छण-उब्ब-धण-सूलभेयगयचलण-मलण-करचरण-कण्ण-णासोट्ठ-सीसच्छेयण जिब्भच्छेयण-वसण-णयणहियय-दंतभंजण-जोत्तलय-कसप्पहार-पाय-पण्हि-जाणु-पत्थर-णिवाय-पीलणकविकच्छु-अगणि-विच्छुयड़क्क-वायाततव-दंसमसग-णिवाए दुट्टणिसजदुण्णिसीहिय-दुब्भि-कक्खड-गुरु-सीय-उसिण-लुक्खेसु बहुविहेसु अण्णेसु य एवमाइएसु फासेसु अमणुण्णपावगेसु ण तेसु समणेण रूसियव्वं ण हीलियव्वं ण णिंदियव्वं ण गरहियव्वं ण खिसियव्वं ण छिंदियव्वं ण भिंदियव्वं ण वहेयव्वं ण दुगंछावत्तियव्वं य लुब्भाउप्पाएउं एवं फासिंदियभावणा भाविओ भवइ अंतरप्या, मणुण्णामणुण्ण-सुब्भि-दुब्भिरागदोसपणिहियप्पा साहू मणवयणकायगुत्ते संवुडेणं पणिहिइंदिए चरिज धम्म। शब्दार्थ - पुणरवि - फिर, फासिदिएण - स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा, फासिय - स्पर्श करके, फासियाइंस्पर्शों का, अमणुण्णषावगाइं - अमनोज्ञ और बुरे, किं ते - वे कौन से हैं, अणेग - विविध प्रकार से, वह - वध करना, बंध - बाँधना, तालण - ताड़ना, अंकण - दाग देना, अइभारारोहण - बहुत भार लादना, अंगभंजण - अंगों को मरोड़ कर तोड़ना, सूईणखप्पवेस - नखों में सूई चुभाना, गायपच्छणणशरीर को छिलना, लक्खारसखारतेल्लकलकलंत - लाख के रस को और कडुए तेल को अति तप्त करके उसके द्वारा शरीर का सेंकना, तउय - रांगा, सीसग - शीशी, काललोह - तप्त लोहे द्वारा, सिंचणसींचना, हडिबंधण - हड्डी-बंधन, रज्जुणिगलसंकल - रस्सी या बेड़ी से बन्धन, हत्थंडुय - हाथों को बांध देना, कुंभिपाग - कुम्भि में पकाया जाना, दहण - अग्नि से जलाया जाना, सीहपुंच्छण - अंडकोश निकालना, उबंधण - उद्बन्धन-गले में रस्सी बांध कर लटना देना, सूलभेय - शूली पर चढ़ा कर भेदन करना, गयचलणमलण - हाथी के पांव के नीचे डाल कर मसल डालना, करचरण-कण्णणासोट्ठसीसच्छेयण - हाथ, पांव, कान, नाक, ओष्ठ और सिर का छेदन, जिब्भछेयण - जीभ को उखाड़ना, वसणणयण-हिययदंत-भंजण - अण्डकोश, नेत्र, हृदय और दाँतों को उखाड़ लेना, जोत्तलयकसप्पहार - चमड़े की चाबुक, हण्टर और लता द्वारा ताड़न, पायपण्हिजाणुपत्थरणिवाय - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org