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________________ 327 चतुर्थ भावना-रसनेन्द्रिय-संयम **************************************************************** कुहिय- विट्ठ-किविण-बहुदुरभिगंधेसु अण्णेहु य एवमाइएसुगंधेसु अमणुण्ण पावगेसु ण तेसु समणेण रूसियव्वं जाब पणिहियपंचिंदिए चरेज धम्म। शब्दार्थ - पुणरवि - पुन:, घाणिदिएण - घ्राणेन्द्रिय से, अग्घाइय - सूंघ कर अपने मन में द्वेष न लावे, गंधाइं - गन्धों को, अमणुण्णपावगाइं - अमनोज्ञ और बुरे, किं ते - वे कौन-से हैं, अहिमडमरा हुआ सर्प, अस्समड - मरा हुआ घोडा, हत्थिमड - मरा हुआ हाथी, गोमड - मरा हुआ बैल, विगभेड़िया, सुणग - कुत्ता, सियाल - शृगाल, मणुय - मनुष्य, मज्जार - बिल्ली, सीह - सिंह, दीविय - द्वीपी-चीता, मय - मृत कलेवर, कुहिय - जो सड़ गये हैं, विट्ठ - विकृत हो गये हैं, किविण - जिनमें कीड़े पड़ गये हैं, बहुदुरभिगंधेसु - अत्यन्त दुर्गन्ध वाले हैं, अण्णेसु- दूसरे, य-और एवमाइएसुइसी प्रकार के, गंधेसु- गन्ध वाले पदार्थ, अमणुण्णपावगेसु - अमनोज्ञ और बुरे, तेसु - उनमें, समणेणसाधु, ण रूसियव्वं - द्वेष नहीं करे, जाव - यावत्, पणिहियपंचिंदिए - पाँचों इन्द्रियों को वश में रखता हुआ, चरेज धम्मं - धर्म का आचरण करे। भावार्थ - घ्राणेन्द्रिय से अप्रिय लगने वाली दुर्गन्ध के प्रति द्वेष नहीं करना चाहिए। वे दुर्गन्धित पदार्थ कौन से हैं ? मरे हुए सर्प का कलेवर, मरा हुआ घोड़ा, हाथी, बैल, भेड़िया, कुत्ता, शृंगाल, मनुष्य, बिल्ली, सिंह, चीता इत्यादि के शव सड़ गए हों, उनमें कीड़े पड़ गए हों, जिनकी दुर्गन्ध अत्यन्त असह्य एवं दूर तक फैली हो और अन्य भी दुर्गन्धमय पदार्थों की गन्ध प्राप्त होने पर, साधु उस पर द्वेष नहीं करे यावत् अपनी पांचों इन्द्रियों को वश में रखता हुआ धर्म का आचरण करे। . चतुर्थ भावना-रसनेन्द्रिय-संयम चउत्थं जिब्भिदिएणसाइयरसाणि मणुण्णभद्दगाई। किं ते? उग्माहिमविविहपाणभोयण-गुलकय-खंडकय-तेल्ल-घयकय-भक्खेसु-बहुविहेसु लवणरससंजुत्तेसु महुमंस-बहुप्पगारमजिय-णिट्ठाणगदालियंब-सेहंब-दुद्धदहि-सरयमज्जवरवारुणी-सीहुकाविसायण-सायट्ठारस-बहुप्पगारेसु भोयणेसु य मणुण्ण-वण्णगंधरसफास-बहुदव्वसंभिएसु अण्णेसु य एवमाइएसु रसेसु मणुण्णभद्दएसु ण तेसु समणेण सज्जियव्वं जावण सइंच मइं च तत्थ कुजा। ... शब्दार्थ - चउत्थं - चतुर्थ, जिब्भिंदिएण - जिह्वेन्द्रिय द्वारा, साइय - आस्वाद लेकर, रसाणि - रसों का, मणुण्णभद्दगाई- मनोज्ञ और उत्तम, किं ते - वे कौन-सै हैं, उग्गाहिय - घेवर आदि पक्वान्न, विविह पाण - विविध प्रकार के पीने योग्य पदार्थ, भोयण - भोजन, गुलकयखंडकय - गुड़ और शक्कर से निर्मित, तेल्लघयकय - तेल और घी में पकाये हुए, भक्खेसु - खाद्य पदार्थों में, बहुविहेसुविविध प्रकार के, लवणरससंजुत्तेसु - नमकीन स्वाद वाले पदार्थों में, महु - मधु, मंस - मांस, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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