SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 328 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०५ **************************************************************** बहुप्पगारमज्जिय- बहुत प्रकार की मदिरा, णिहाणग - बहुमूल्य चीजों से बनाया हुआ द्रव्य, दालियंबकांजी बड़े, सेहंब - आम आदि का अचार अथवा इमली की चटनी, दुद्ध - दूध, दही - दही, सरय - सिरका, मज - मद्य, वरवारुणि - उत्कृष्ट मदिरा, सीहु - सिधु, काविसायण - कापीशायन मदिरा विशेष, सायट्ठारस - शाक है अठारहवां जिनमें ऐसे, बहुप्पगारेसु - बहुत प्रकार के, भोयणेसु - भोजन, य - और, मणुण्ण-वण्णगंधरसफास-बहुदव्व-संभिएसु - जिनका वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श बहुत ही उत्तम है और उत्तम पदार्थों से संस्कारित किये गये हैं ऐसे, अण्णेसु - दूसरे, य - और, एवमाइएसु- इसी प्रकार के, रसेसु - रसों का स्वाद ले कर, मणुण्णभद्दएसु - मनोज्ञ और स्वादिष्ट, तेसु - उनमें, समणेण - साधु, ण सज्जियव्वं - आसक्त नहीं हो, जाव - यावत्, सई - स्मरणं, य - और, मई - विचार, तत्थ - उनका, ण कुज्जा - नहीं करे। . भावार्थ - चौथी भावना जिह्वेन्द्रिय का निग्रह है। साधु रसनेन्द्रिय द्वारा मनभावने एवं उत्तम रसों का आस्वादन करके आसक्त नहीं बने। वे रस कौन-से हैं? . उत्तर - घृत में तल कर बनाये गए घेवर खाजा आदि और विविध प्रकार के भोजन-पान, गुड़ और शक्कर से बनाये हुए तिलपट्टी लड्डू, मालपूआ आदि भोज्य पदार्थों में, अनेक प्रकार की लवणयुक्त (नमकीन-मशालेदार) वस्तुओं में, मधु, मांस, बहुत प्रकार की मदिरा बहुमूल्य सामग्री से निर्मित पदार्थ कांजी बडे. आम आदि का अचार या इमली आदि की चटनी. दध, दही, सिरका, मद्य, वरवारुणी (उत्तम मदिरा) सिधु (आसव विशेष-गन्ना आदि से बनाया हुआ मद्य) कपिशायन (मदिरा विशेष) अठारह प्रकार के शाक (अथवा अठारहवाँ शाक है जिस भोजन में ऐसा) और विविध प्रकार के भोजन तथा वे द्रव्य कि जिनका वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श उत्तम है और उत्तम वस्तुओं के योग से संस्कारित किये गये हैं, इस प्रकार के सभी उत्तम एवं मनोज्ञ स्वादिष्ट रसों में साधु आसक्त नहीं बने . यावत् उनका स्मरण-चिन्तन भी नहीं करे। . विवेचन - उपरोक्त भावना में मन-मोहक उत्तम रसों का वर्णन करते हुए शास्त्रकार ने 'मधु मद्य और मांस' का भी उल्लेख किया है। जैन मात्र के लिए इनका सेवन निषिद्ध है। ये वस्तुएँ आसक्ति बढ़ाने और लुब्धता में वृद्धि करने वाले पदार्थों में सम्मिलित है, इसलिए मनोज्ञ रस वाले पदार्थों में इनकी भी गणना की गई है अथवा जिसने गृहस्थावस्था में इनका आस्वादन किया हो और उनके देखने या स्मृति में आने से रसाकर्षण उत्पन्न हो, तो उससे बचने के लिए साधु को रसनेन्द्रिय निग्रह करने का उपदेश दिया है। पुणरवि जिब्भिंदिएण साइय रसाइं अमणुण्णपावगाइं किं ते? अरस-विरससीय-लुक्ख-णिज्जप्पपाण-भोयणाई दोसीण-वावण्ण-कुहिय-पूइय-अमणुण्णविणट्ठप्पसूय-बहुदुब्भिगंधियाइं तित्त-कडुय-कसाय-अंबिलरस-लिंडणीरसाइं अण्णेसु य एवमाइएसु रसेसु अमणुण्णपावगेसुण तेसु समणेण रूसियव्वं जाव चरेज धम्म। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy