________________ *** ** *** ** ** * द्वितीय भावना-चक्षुरिन्द्रिय-संयम 323 *********************************************** द्वितीय भावना-चक्षुरिन्द्रिय-संयम 'बिइयं चक्खुइंदिएण पासिय रूवाणि मणुण्णाई भद्दगाई - सचित्ताचित्तमीसगाई कटे पोत्थे य चित्तकम्मे लेव्यकम्मे सेले य दंत-कम्मे य पंचहिं वण्णेहिं अणेगसंठाणसंठियाइं गंठिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमाणि य मल्लाइं बहु विहाणि य अहियं णयणमणुसुहयराइं वणसंडे पव्वए य गामागरणयराणि य खुहिय-पुक्खरिणि-वावीदीहिय-गुंजालिय-सरसरपंतिय सायर बिल-पंतिय खाइयणई-सर-तलाग-वप्पिणीफुल्लुप्पल-पउमपरिमंडियाभिरामे अणेगसउणगण-मिहुण-वियरिए वरमंडव-विविहभवण-तोरण-वेइय-देवकुल-सभा-प्पवा-वसह-सुकय-सयणासण-सीय-रह-सयडजाण-जुग्ग-संदण-णरणारिगणे य सोमपडिरूव-दरिसणिज्जे अलंकिय-विभूसिए पुवकयतवप्पभाव-सोहग्गसंपउत्ते णड-णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-कहगपवग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंब-वीणिय-तालायर-पकरणाणि य बहूणि सुकरणाणि अण्णेसु य एवमाइएसु रूवेसु मणुण्णभद्दएसु ण तेसु सभणेण सज्जियव्यं ण रजियव्वं जाव ण सइंच मई तत्थ कुजा। . - शब्दार्थ - बिइयं - द्वितीय, चक्खुइंदिएण- चक्षु-इन्द्रिय से, पासिय - देख कर, रूवाणि - रूपों को, मणुण्णाई - मनोज्ञ, भद्दगाई - मनोहर, सचित्ताचित्तमीसगाई - सचित्त अचित्त और मिश्र, कडे - काष्ठ, पोत्थे - पुस्तक या वस्त्र पर, चित्तकम्मे - चित्र कर्म में, लेव्वकम्मे - लेप से बनाये हुए, सेले य - पाषाण पर, दंतकम्मे - हाथी के दांत पर बने हुए, पंचहिं - पांच, वण्णेहिं - वर्णों वाले, अणेगसंठाणसंठियाई - अनेक प्रकार के आकार वाले, गंठिम - माला के समान गूंथे हुए, वेढिम - . गेंद की भांति वेष्टित किये हुए, पूरिम - चपड़ी-लाक्षादि भर कर बनाये हुए, संघाइमाणि - फूल आदि को एक दूसरे से मिला कर उनके समूह से बनाये हुए, मल्लाइं बहुविहाणि य - बहुत प्रकार के माला सम्बन्धी रूप, अहियं णयणमणसुहयराइं - नेत्र तथा मन को अधिक सुखकारी, वणसंडे - वनखण्ड, पव्वए - पर्वत, गामागरणयराणि - ग्राम आकर तथा नगरों को, खुद्दिय - छोटा जलाशय, पुक्खरिणिपुष्करणी, वाणी - बावड़ी, दीहिय - दीर्घिका, गुंजालिय - गुंजालिका, सर - सरोवर, सरपंतिय - सरोवरों की पंक्ति, सायर - सागर, बिलपंतियं - धातुओं की खानों की पंक्ति, खाइय - खाई, णई - नदी, सर - तालाब, वप्पिणी - नहर, फुल्लप्पलपउम - विकसित उत्पल नील कमल और रक्त कमल, परिमंडियाभिरामे - उनकी शोभा बहुत बढ़ी हुई है, अणेगसउणगणमिहुणवियरिए - अनेक प्रकार की - 'भद्दगाई' शब्द बीकानेर वाला प्रति में नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org